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नक्षत्र-लक्षणम्
४३३ आमा दरेक मंगलकार्यों स्त्री विषयक कार्यो, अलंकार, मंदिर, गीत आदि कार्यों सिद्ध थाय छे. ____स्वाति, विशाखा आ बे नक्षत्रो ‘मिश्र' संज्ञक छे, आमा सर्व साधारण तेम ज उग्र कार्यो करवा. ___ पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति आ पांच नक्षत्रो 'चर' संज्ञक छे, आमां यान-वाहन कार्यो, विभूषा, उद्यान कार्य, मन्त्रादि चरकार्यों सिद्धिने पामे छे. कथितान्यपि लघुवृन्दे, चरसंज्ञे तानि कार्याणि । चरधिष्ण्ये कथितान्यपि, कार्याणि लघुगणे नूनम् ॥१८६।। यद्यद्दारुणभोक्तं, तत्तत्कर्म त्वथोग्रभे कार्यम् । साधारणमिश्राख्यं, क्रूरोग्रं ती णदारुणं तुल्यम् ॥१८७॥ साधारणवृन्दोक्तं, यत्कर्माद्यं क्रूर सदा कार्यम् । ध्रुवमचलं क्षिप्रलघु, चरं चलं मैत्र हुसंज्ञे ॥१८८॥ निखिलेष्वपि धिष्ण्येष्विह, सामान्य कार्यमित्युक्तम् । तत्तत्प्रकरणकथितं, तदेव मुख्यं विजानीयात् ॥१८९॥
भाटी०-लघुगणमां कहेल कार्यो चर संज्ञक नक्षत्रोमां अने चर नक्षत्र गणमां कहेल कार्यो लघुगणमां करवां, जे जे कार्य दारुण नक्षत्रमा करवानुं कहेल छे ते उग्र नक्षत्रमा पण करवु, साधारण-मिश्र, क्रूर, उग्र अने तीक्ष्ण-दारुण ए तुल्यस्वभावनां नक्षत्रो छे, साधारणमा करवानां कार्यों क्रूर नक्षत्रोमा करवां, ध्रुव अचल, क्षिप्र लघु, चर चल, मैत्र मृदु, साधारण मिश्र, क्रूर उग्र अने तीक्ष्ण दारुण, ए एक बीजाना नामान्तरो छे, एकमां कहेल काम बीजामा करी शकाय छे, आ प्रमाणे तमाम नक्षत्र विधेय सामान्य कार्य कछु, भागल ते ते प्रकरणमां कहेल कार्य तेनुं मुख्य कार्य जाणवू.
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