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________________ ४१३ बार-लक्षणम् । स्त्रीगीतशय्यामणिरत्नगन्धवस्त्रोत्सवालंकरणादिकर्म । भूपण्यगोकोशकृषिक्रियाश्च, सिध्यन्ति शुक्रस्य दिने समस्तम् ॥१३७।। लोहाश्मसीसत्रपुरस्त्र(वास्तु)दासपापानृतस्तेयविषासवाद्यम् । गृहप्रवेशो द्विपबन्ध दीक्षा, स्थिरं च कर्मार्कसुतेऽह्नि कुर्यात् ।।१३८|| भाल्टी-चातुर्य, व्यापार, अध्ययन, कलाभ्यास, शिल्पग्रहण, लिपि आरंभ, लेखन, धातुक्रिया, सुवर्णयुक्ति, संधि, व्यायाम अने शास्त्रार्थवाद ए कार्यों बुधना दिवसे करवा. धर्मकार्य, पौष्टिककर्म, यज्ञ, विद्याध्ययन, मांगल्यकार्य, सुवर्णभूषण, वस्त्रपरिधान, गृहकार्य, यात्रा, रथ, अश्व, औषध, विभूषण आदि कार्य गुरुवारे करवां. स्त्री-गीत-शय्या संबन्धी कार्य, मणि, रत्न, सुगन्धी, वस्त्र, उत्सव, आभूषण आदिनुं कार्य, भूमि, व्यापार, गौ, कोश अने कृषिकर्म ए बधां कार्यों शुक्रवारे करवाथी सिद्ध थाय छे. लोह, पत्थर, सीमुं, जसद, गृहकर्म, दास, पाप, असत्य, चौर्य, विष, मदिरा आदिनां कामो तेमज गृहप्रवेश, हस्तीवन्धन, दीक्षा, अने स्थिर कार्य शनिवारना दिवसे करवू. वार कर्तव्योना अंगे सारांश ए के लाक्षाकौसुम्भमानिष्ठ-राग-काश्चनभूषणे। प्रशस्तौ भौम-मार्तण्डौ, रविजो लोहकर्मणि ।।१३९॥ सोम सौम्यगुरुशुक्रवासराः, सर्वकर्मसु भवन्ति सिद्धिदाः । भानुभौमशनिवासरेषु तु, मोक्तमेव खलु कर्म सिध्यति ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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