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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे तिथिरेकगुणा प्रोक्ता, नक्षत्रं च चतुर्गुणम् । वारश्चाष्टगुणः प्रोक्तः, करणं षोडशान्वित ।।११६।। द्वात्रिंशलक्षणो योग-स्तारा षष्ठिगुणा स्मृताः। चन्द्रः शतगुणः प्रोक्तो, लग्नं कोटिगुणं स्मृतम् ॥११७।। __भा०टी०-वार, नक्षत्र, लग्ननी शुद्धि, मले तो तिथि सदोष होय तोय निर्दोष गणाय छे. कमलमां सुगन्धसौन्दर्यादि गुणो होवाथी ते कांटालु होला उनां गुणवान् गणाय ले. जेटली काळजीथी शुद्ध नक्षत्र अने बलबान लग्ननी गवेषणा कराय हे तेटली योग करण के तिथिनी कराती नथी, केम के तिथिनो दोप वा गुण अल्प होय छे. तिथि एक गुण, नक्षत्र चार गुण, वार आठ गुण, करण शोल गुण, योग बत्रीस गुण, तारा पष्ठी गुण, चन्द्र सो गुण, अने लग्न क्रोड गुणवाल कहेल छे.
गुणस्य दोषस्य च तारतम्यं, विचारणीयं विदुषा प्रयत्नात् । कश्चिद् गुणो दोषशतं निहन्ति, दोषो गुणानामपि हन्ति लक्षम् ॥ ११८ ॥ पूर्वाऽपराभ्यां सहितस्तिथिभ्यां, निहन्ति दर्शो निचयं गुणानां । तमेव हित्वाऽमृतसिद्धियोग
स्तिथेरशेषानपि हन्तिदोषान् ॥ ११९ ।। भा०टी०-विद्वानोए गुणदोपर्नु तारतम्य यत्नपूर्वक विचार जोइये, केम के कोइ गुण सो दोषोनो नाश करे छे, त्यारे कोइ दोष लाख गुणोनो घातक होय छे, पूर्व पछीनी बे तिथिओ सहित अमावस्या गुण समूहनो नाश करनारी छे, त्यारे अमृत सिद्धियोग एक अमावास्या सिवाय तिथिगत सर्व दोषोनो नाश करे छे.
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