________________
३९९
तिथि-लक्षणम् ]
कुलोपकुल-तिथिओप्रतिपदा तृतीया, पंचमी, सप्तमी, नवमी, एकादशी, त्रयोदशी पूर्णिमा आ आठ तिथिओ उपकुल छे. चतुर्थी अष्टमी द्वादशी चतुर्दशी कुल छे, अने द्वितिया षष्ठी, दशमी, आ ३ तिथियो कुलो. पकुल संज्ञक छे. उपकुल तिथिमां प्रयाण करनार युद्धमां जीते, कुलमां युद्ध थाय तो स्थायी जीते, कुलोपकुलमां संधी थाय.
तिथि वृद्धि तिथि क्षयः__ पक्षरन्ध्र तिथिओनी जेम ज तिथिवृद्धि अने तिथिक्षय पण शुभ कार्यमां वर्जित करेला छे. एनी व्याख्या नीचे प्रमाणे छेश्रीन् वारान् स्पृशती त्याज्या, त्रिदिनस्पर्शिनी तिथिः । वारे तिथित्रयस्पर्शिन्यवमं मध्यमा च या ॥ १०५ ॥
भा०टी०-त्रण वारोने स्पर्शनारी तिथि त्रिदिन स्पर्शिनी कहेवाय छे. एटले के त्रण वारो पैकीना वचला वारने स्पर्शती तिथि वर्जित छे. एथी विपरीत एक वार ज्यारे त्रण तिथिओने स्पर्शे छे त्यारे तिथि क्षय थाय छे. आ एक वारे स्पर्शेली ऋण तिथिओ पैकीनी वचली तिथि अवम एटले क्षीण तिथि गणाय छे. आ वस्तु नीचेना उदाहरणोथी समजाशे. एक तिथि त्रण वारनो स्पर्श करे तेनुं उदाहरण
संवत् २०१०ना चण्डमार्तण्ड पञ्चाङ्गमा ज्येष्ठ शुक्ला नवमीनी वृद्धि छे. ज्येष्ठ शुदी ८ शुक्रवारे अष्टमी घटी ५७ पल० छशनिवारे प्रथम नवमी घटी ६० पल छे. अने द्वितिय ९ नवमी रविवारे घटी १ पल २६ छे. ज्येष्ठ शुदि ८ नी ५७ घडीओ वीत्या पछी नवमी लागी एटले ३ घडी पर्यन्त अष्टमीना वार शुक्रनो नवमीए स्पर्श कर्यो, प्रथम नवमीना वार शनिनो नवमीए ६० घडी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org