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धारणागति-लक्षण ]
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' प्रो०६-८ प्री०२-१२' इत्यादि स्थले देव तथा धनिकना राशिपतियोने परस्पर प्रीति छे एम समजवु, ज्यां ७-७ आदिमां राशि मैत्री के त्यां राशिपति मैत्रीनो विचार कर्यो नथी, पण ज्यां षडष्टक, वीयावा, नवमपंचममां राशि मैत्री नथी त्यां ते राशियोना स्वामीयोनी मैत्री जोईने नाम ग्रहण कर जोइये एम धारी तेवां नामो वीजा भांगा आदिना कोष्टकोमां लख्यां छे. तेमां पण प्रीति नव पंचमथी प्रीति बीयावारुं, अने तेनाथी पण प्रीति षडष्टक विशेष सारुं होय छे. तेमां पण ज्यां देवरा शिथी धनिकराशि निकट अने धनराशि थी देवराशी दूर होय ते नव पंचमादि ग्रहण करतुं वीर्जु नहिं तेवा प्रकारं न मळे तो क्वचित तेवं पण लेवं, देवराक्षस रूप गणवैर पण लोकमां वर-कन्यादिकने विषे ग्राह्य कयूँ छे, 'ग' एटले देवराक्षसरूप गणवेर छे एम समजनुं 'ड्यो' 'व' एटले धनिकने देवसंबंधी 'योनि' तथा 'वर्ग' अनुकूल नथी. 'बग' 'बयो' 'वव' नो अर्थ धनिकन गण, योनि, वर्ग, देवना गण योनि वर्ग करतां बलिष्ठ छे एम जाणवु, अतिनिर्बलथी बलिष्टनो पराभव थई शकतो नथी, ए अभिप्रायथी धनिकनो मार्जारादि बलिष्ट वर्ग देवना उंदुरादि अल्पबली वर्गथी पराजित थई शकतो नथी. तेथी आवा प्रकारर्नु गणतर अने वर्गवैर त्रीजे भांगे ग्राह्य कयुं छे.
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' sant' 'saa' एटले धनिकनी योनि तथा वर्ग निर्बल छे एम जाणवुं, परंतु ए विशिष्ट दोष नथी, केमके 'जातिवैर' नथी, शास्त्रमां योनि संबन्धी जातिर अने वर्गसंबन्धी इतरेतर पंचम वर्गने ज वज्र्ज्या छे. लोकमां पण ए विषयमां आवीज मान्यता छे. आ यंत्रमां बहुश्रुतोना विचारानुसार यथा शुद्ध अने यथाल्पदोष जिननामो च्यारे कोटकोमां लख्यां छे.
। इति धारणागतियंत्रकाम्नायः ।
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