________________
धौ' आदर्श निषेध अर्थमा नाग योनि-गणकार' ता
३३८
[कल्याण-कालका-प्रथमखण्डे कोठामा 'गगा-गिगी', 'गु-गे' ना कोठामा 'गुगू-गे गै', तथा 'गो' ना कोठामा ‘गो गौ' इत्यादि. __ ज्यां 'घ' 'छ' आदि क ज अक्षर लखेल छे, त्यां १० नो आंक छे, एथी समजवान के आना- ‘घ घा घि घी घु घू घे घै घो घौ' आ दशे अक्षरो ए कोठामा छ ज्यां 'ऽता, ऽयो, ऽग, ऽब' इत्यादि छे, त्यां '5' ए निषेध अर्थमां लुप्त अकार छ 'ता' 'यो,' 'ग, 'व, अक्षरो अनुक्रमे धनिकनी 'तारा-योनि-गण अने वर्ग' वाचक छे. आ अक्षरोनी आदिमां आवेल '5' अर्थात् 'अकार' तारायोनिगणवर्गना आनुकूल्यनो निषेध सूचवे छ. अर्थात् 'उता' एटले ताराबलनो अभाव, इत्यादि.
ज्यां 'ऽता' लखेल होय त्यां 'धनीकनी' अने ज्यां 'ऽदेता' होय त्यां 'देवनी तारा सारी नथी' एम समजवं. 'ऽता' मां देवनी अने 'ऽदेता' मां धनिकनी तारा अनुकूल छे ए अर्थतः सिद्ध समजबू, परंतु धारणागतिमां 'तागदोष' विचारातो नथी, विंध निर्माणना अधिकारमा योनि आदि ६ वातो ज जोवानुं कथन छे. पूज्य श्री गुणरत्नसूरिजीए धारणायंत्रकोमा तारादोष लख्यो छे पण तेनो हेतु समजातो नथी, अहिं लग्ववानुं कारण तो तेमना यंत्रकनुं अनुसरण मात्र छे, एथी ज 'देता' इत्यादि 'तारादोष' जणावेल होवा छतां ते जिननामो प्रथम सत्रोगां जणावेलां छे. __ ज्यां देव तथा धनिकनुं नक्षत्र एक ज छे त्यां योनि आदि सर्व वातोनी शुद्धि होवाथी, नेमज घणा पूर्वाचार्योनी संमतिथी ग्राह्य होवा छतां आजकाल ए विषयमा केटलाको विवाद करे ले, ते विवादना निवारणार्थे प्रथम वीजां नामो ग्राह्य थाओ ए आशयथी तेवां नामो निर्दोष छतां प्रथम भांगे लखेल बीजा नामोना अन्तमां लख्यां छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org