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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे द्वारनी बहार बंने बाजुना आलाओमां बेसाडे छे. जाणे के भगवंतना द्वारपाल अने द्वारपालिका होय.
जिनप्रनिमा परिकरनी साथे राखबानो रिवाज हतो; त्यांसुधी आ देवयुगल भगवंतना चरणसमीपमा रहेतुं हतुं, पण आजे परिकर उठी गयुं छे, त्रण मूर्तिओ गभारामां बेसाडाय छे अने यक्ष-यक्षिणी जुदा बेसाडाय छे. एटलं ज नहि, आ युगलनी मूर्तिो परिकरगत एमनी मूर्तिओ करता म्होटी होय छे. आ स्थितिमा एमने गभारामां बेसाडवा जेटलं स्थान रहेतुं नथी. तेथी गभारानी बहार कोलीना आलाओमां गूढ मंडपमां, अने छेवटे तेनी बहार चोकि मंडपना आलाओमां बेसाडवानी रीति चाली नीकली छे. पण आनो अर्थ ए नथी के यक्ष-यक्षिणीने भगवंतथी दूर ज बेसाडवा, खरी रीते तो एओ जेटला भगवन्तनी पासे होय तेटला सारा; भगवन्तना सामीप्यमांज ए प्रसन्न रहेनारों छे.
५ यक्ष-यक्षिणीना युगलोर्नु स्वरुप वर्णन तीर्थकरोना चरित्रोमां, प्रतिष्ठा पद्धतिओमां अने शिल्पना आक र ग्रन्थोमां पण दृष्टिगोचर थाय छे.
तीर्थंकर चरित्रोक्त अने प्रतिष्ठा ग्रन्थोक यक्ष-युगलोर्नु वर्णन लगभग सरखं छे, पण शिल्पशास्त्रोक्त वर्णनमा घणो मतभेद छे, नामो आयुधो अने वाहनोने अंगे आ विषयमा प्रतिष्ठा कल्पो अने शिल्पग्रन्थो मौलिक मतभेद धरावे छे, तेथी अमो आ बने पद्धतिओने अनुसारे आ यक्ष-यक्षिणीयोनुं स्वरुप वर्णन करशुं. अत्र एक वातनो निर्देश करवो अत्यावश्यक छ के अमोए आ युगलोना स्वरुप वर्णनमा प्रतिष्ठा पद्धतिओ पैकी श्री पादलिप्तमूरिनी निर्वाण कलिकाने अने शिल्पग्रन्थो पैकी अपराजितपृच्छाने मुख्य आधार ग्रन्थ मान्यो छे. आ ग्रन्थोमां करेल वर्णनानुसारे अमो २४ यक्षो अने यक्षिणीओनुं स्वरूप बे यंत्रकोमा आपीए छीए. आमां १ लुं यंत्रक निर्वाणकलिकानुसारी अने बीजं यंत्रक अपराजित पृच्छानुसारी छे.
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