SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनशासन-दैव-लक्षणम्] पाणी रही जाय, मेल जामी जाय; ए बधी अगवडोनो विचार करी तत्कालीन गीतार्थ पुरुषोए परिकर वगरनी प्रतिमाओनी बंने तरफ १-१ तेथी न्हानी जिनप्रतिमा बेसाडीने परिकरनी अभाव पूर्ति करवा मांडी. घणा दीर्घकालथी ज्यां प्रतिमाओ प्रतिष्ठित थयेली छे, ते बधी परिकर युक्तज छे, पण लगभग सोलमा सैका पछीना समयमा प्रतिष्ठित थयेल देवालयोमा परिकरना स्थाने त्रिगडां (३ प्रतिमाओ) स्थापन थयेलां जोवाय छे, अने आज पर्यंत एज प्रथा प्रचलित छे. ___ ज्यारथी परिकरचें स्थान त्रिगडे लीधुं त्यारथी परिकरगत चमरधरादि अन्यदेवोनी साथे यक्ष-यक्षिणीनां युगलो पण जैनदेवालयोमांथी अदृश्य थयां. सोलमीथी ओगणीसमी शताब्दी सुधीमां प्रतिष्ठित थयेल देवालयोमां तमने यक्ष-यक्षिणी युगलो भाग्येज नजरे पडशे. छेल्ला लगभग १०० वर्षनी अंदर तपागच्छना श्रीपूज्योए; यतिओए अथवा साधुओए प्रतिष्ठित करेल जैनदेवालयोमां माणिभद्र अने चक्रेश्वरीनी स्थापना थवा मांडी छे. पछीथी धीरेधीरे मूलनायकना यक्ष-यक्षिणीनां युगलो पण जूदां स्थपावा मांडयां. खरतरगच्छीय प्रतिष्ठाकारकोए प्रथम क्षेत्रपाल अने भैरवने जिनालयमां स्थान आप्यु अने पछी तेमगे पण मूलनायकना यक्ष-यक्षिणीने देवालयोमा स्वतंत्र आसन आप्युं छे. ४ उपरना विवेचनथी जणाशे के जैनदेवालयोमा यक्ष-यक्षिणीनु स्थान तेमां प्रतिष्ठित मूलनायक तीर्थकरना सेवक तरीकेनुं छे, नहि के देवालयना अधिष्ठाता देव तरीकेर्नु, अथवा तो देवालयना रक्षक देव तरीकेनु; पण आजे आपणा समाजमां ए विषयर्नु घोर अज्ञान प्रवर्ती रघु छे. घणा खरा प्रतिष्ठाकारक पुरुषो पण आ देवयुगलनी वास्तविक स्थिति न समजतां एमने भगवन्त तीर्थकरना तेमज एमना देवगृहना रक्षक रुपे मानी भगवन्तना स्थानथी अति दूर गृढमंडपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy