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________________ ३०० [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे प्रतिमा-स्कन्धमुत्सेधाः, पृष्ठपादान्तबाहिका। स्तंभो मृगाल संयुक्तौ, पूर्वादिविरालैर्विदुः ॥२०॥ वरालंकार संयुक्ताः, सुरेन्द्रा गुणपर्वताः । प्रह्लादोवक्रमस्यास्य (वामतश्चास्य) चामराधार सौच्यते ॥२१॥ दक्षिणे बाहुसंस्थाने, अपीन्द्रो विष्णुनामतः उदयः स्तंभिकाभिश्च, तिलकं शंबव्यालके ॥२२॥ मकरौ च प्रक्षोभादयौ, कर्तव्यो विवृताननौ। उच्छ्यमंगुलाः पंचा-शद्विस्तारे द्वाविंशतिः ॥२३॥ व्याल उपांगसहितोंऽगुलानां पदकमेव च । मूलनायकस्तनगर्ने, दृष्टिमिन्द्रस्य कारयेत् ॥२४॥ नानाभरणशोभाढयं, नानारत्नोपशोभितम् । इन्द्रस्य लक्षणं चैव, चामरधारः प्रकथ्यते ॥२५।। भा०टी०-हवे चामरेन्द्र नामथी प्रसिद्ध चामरधरोने कहीश. चामरेन्द्रो मूलप्रतिमाना पगोनी पाछली फरके बने बाहीओना वचमां करवा, तेमनी उंचाई मूलप्रतिमाना स्कन्ध पर्यन्त करवी अने चामरेन्द्रोना पग पाछल बाहिका करवी. __चामरेन्द्रोनी बने तरफ बाहिकामां कमलयुक्त थांभलिओ करवी, ते उपर विरालिकाओ करवी, इन्द्रोने सुन्दर अलंकारो बडे शोभित गुणोना पुंज जेवा बनाववा, आमां प्रतिमाना डाबा हाथ तरफनो इन्द्र 'प्रह्लाद' अने दक्षिण विभागनो इन्द्र 'विष्णु' ए नामे ओलखाय छे. चामरेन्द्रोनो उदय थांभलिओ जेटलो करवो, थांभलिओ उपर तिलकडा, शंबर, हाथी अने उंडाणमां फाडेल मुखवाला मगरो करवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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