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________________ परिकर-लक्षणम्] मुख फाडेलां एटले के विकृत करवां, जाणे के जीवोने एनाथी बचाववा माटे जिनेश्वरे पोताना आसन नीचे दबावी दीधेला क्रोधनां मूर्तरुपो. सर्व केवलीतीर्थकरोना चरण-सेवको जे २४ यक्षो कह्यां छे, तेमांथी १-१ यक्षनी मूर्ति बनाववी एटले के जे तीर्थकरनी प्रतिमा होय तेना यक्षनी प्रतिमा जिनना जमणा हाथनी तरफना आसनमां शिवनी आगे बनाववी, यक्षो प्राणियोना मित्रो होय, तेवा सौम्य अने गज, सर्प आदि स्व स्व वाहनयुक्त, हाथोमां निधानवाला अने वर मुद्रावाला बनाववा. तेमनी बने बाजु कमल युक्त स्तंभो बनाक्वा. स्तंभो मकरो अने ग्रासडाओना रूपको वडे शोभित करवा, अर्थात् आ वधी रचनावडे यक्षोने सुशोभित करवा. आ यक्षो विस्ता रमां १४ आंगलना करवा जोईये. वली २४ शासनदेवीओ, के जे पद्मासनादि वाहनो अने आयुधो धरावनारी छे, धर्मने निमित्ते प्रवृत्ति करनारी छे, एवी अंबिका आदि जे देवी जे तीर्थंकरनी शासनदेवी होय ते देवीनी शुभ मूर्ति ते तीर्थकरनी प्रतिमाना आसनना डाबे भागे शिवनी पछी बनाववी. एनो पण विस्तार १४ आंगलनो राखवो, अने एनी पण बंने बाजुमां कमलयुक्त स्तंभो बनाववा, उपर विरालिकाओनां मुखो करवां. आ प्रमाणे सिंहासननी रचना कही, हवे चामरधरोने सांभल ! चामरधरानतो वक्ष्ये, चामरेन्द्रा इति स्मृतान् । पृष्टपदोद्भवाः कार्या, बाहिकोभयमध्यतः।।१९।। दुर्बलतानां बलप्रदः" आवा शब्दोथी कदाच ज्योतिषनो 'शिव' 'महादेव' ना रुद्ररूपना अर्थमां पण होय, प्रस्तुतमां शिवनुं जे स्वरुप लख्यु छे एथी तो ए 'शिव' हस्तीथी पण अधिक 'महाकाय' कोई क्रूर हिंसक जीव होय एम ज जगाय छे. अमारी कल्पना प्रमाणे आ शिव ते रुद्रनुं मंहारक 'काल'रूप छे जेने श्री जिनेश्वरे आसन नीचे दबाव्यु छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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