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________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे अर्थ-१६०आंगल१, १५० आंगल२, १४० आंगल ३, १३५ आंगलना उदयवाला ४ द्वारो ज्येष्ठ, १३० आंगल, १२० आंगल अने ११० आंगलना उदयनां ३ द्वारी मध्यम अने १०० आंगल ९० आंगल तथा ८० आंगलना उदयनां त्रण द्वारो कनिष्ठ कहेवाय छ, आ ज्येष्ठ मध्यम कनिष्ठ द्वारोना उदयमा अनुक्रमे ९-१०-१० आंगलो उमेरता द्वार विशेष शुभकारक बने छे, उदयथो अर्धमाने द्वारविस्तार करवो अने शारवाओ संख्यामां विषम करवी. एकंदर ४ ज्येष्ठ, ३ मध्यम, ३ कनिष्ठ आम १० द्वारो निष्पन्न थाय छे. (लक्षणसमुच्चये २९ मो विधिः) उपर्युक्त द्वारना अनेक भेदभेदान्तरोनो विचार करी द्वार विषयक भूलो काढनार शिल्पिओ अने स्वयंभू निरीक्षकोए हीनाधिक्यनी अशुद्धिओ बतावतां पहेलो पोतानी योग्यता उपर लक्ष्य आप. उत्तमादिदंडोनुं परिमाणइन्द्र १४ ग्रह ९ तुदहस्तो वा, क्रमाज्ज्येष्ठादिको भवेत् । बंशवृद्धिकरो वांश्यो, धर्मायौँ शालपौंदरौ ॥" अर्थ-चौद हाथनो दंड ज्येष्ठ, नव हाथनो मध्यम अने छ हाथ सुधीनो होय ते कनिष्ठ दंड कहेवाय छ, अर्थात् १ थी ६ हाथ सुधीनो होय ते कनिष्ठ, ७ थी ९ हाथ सुधीनो मध्यम अने १० थी १४ सुधीनो ज्येष्ठ दंड होय छे. एथी फलित थयुं के १४ हाथथी वधारे कोइ दंड होतो नथी. वांसनो दंड वंशनी वृधि करनार अने शाल तथा पोंदर वृक्षना दंडो ए धर्म अर्थने आपनार थाय छे. ____ध्वजाद्वारनी दिशा विषे मतो"प्रासादपृष्ठदेशे च, ऊचुः केचिद् ध्वजालयम् । ऐशाने वा प्रदेशे च, मारुते च तथापरे ॥" अर्थ-केटलाको प्रासादना पृष्ठ भागमां ध्वजदंडनो आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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