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प्रतिमा-लक्षणम् ]
ર૮રૂ चिपुटी यत्कृतार्थानां, प्राप्तानां च व्ययो भवेत् । जायते प्रतिमा निम्ना, चिन्ताहेतु-रधोमुखी ॥४५।। अथापदे तिरश्चीना, नीचोच्चा तु विदेशदा । अन्यायद्रव्यनिष्पन्ना, परवास्तु दलोद्भवा । न्यूनाधिकांगी प्रतिमा, सर्वस्य परिनाशिनी ॥४६॥
भाण्टी०-भयंकर आकारवाली करावनारने अने प्रमाणाधिक अंगवाली प्रतिमा शिल्पी (करनार कारीगर )ने हणे छे. दुबली द्रव्यनो नाश करनारी अने पातलपेटी दुर्भिक्षकारीणी थाय छे. वांका नाकवाली दुःख देनारी, ट्का शरीरवाली क्षय करनारी, नेत्र वगरनी नेत्रनाशिनी थाय छे अने प्रमाणथी जाडी प्रतिमा सौभाग्यहीन होय छे. स्तब्ध (अकड ) दृष्टिवाली दुःख देनारी, हीनांगी भोगनो नाश करनारी अने कटिहीना प्रतिमा आचार्यनो घात करनारी होवाथी त्याज्य छे. जंघाहीना भ्रातृ-पुत्र-मित्रनो विनाश करनारी अने हाथ-पगनी खोडवाली प्रतिमा धनक्षय करनारी थाय छे. चिपटी आंखवाली द्रव्य व्यय करावनारी अने नीची तथा नीचा मुखनी प्रतिमा चिन्ता करावनारी थाय छे. तिरछी नजरवाली आपत्ति लावनारी अने प्रमाणथी नीची वा उंची प्रतिमा प्रवास देनारी थाय छे. अन्यायोपार्जित द्रव्यथी तैयार थयेली बीजाना वास्तु द्रव्यथी बनेली अथवा तो न्यूनाधिक अंगोपांगवाली प्रतिमा सर्वनो नाश करनारी निवडे छे.
उपर्युक्त प्रतिमानां अशुभ लक्षणो प्रायः प्रतिमानां घडनार शिल्पीना हाथे थयेलां होय छे, ते प्रतिष्ठा पहेलां प्रतिमा जोवाथी जणाई आवे छे अने तेवी अलाक्षणिक प्रतिमाओ वर्जी शकाय छे; वळी प्रतिष्ठा करनारनी असावधानीथी स्थापन करती वखते केटलीक भूलो थई जवा पामे छे ते पण न थवी जोइये ए संबन्धमां फल प्रति
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