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प्रतिमा-लक्षणम् ]
त्रिगुणातीत मोक्षप्राप्तिने अर्थ शास्त्रकारोए आ जिनेश्वरदेवनां ऋषभथी वर्धमान पर्यन्तनां २४ नामो प्रयोगमां लीधां छे.
ऋषभादि परिवारे, दृषदां वर्णसंकरम् । न समांगुल संख्या च, प्रतिमा मानकर्मणि ॥|४|| उपविष्टस्य देवस्य, ऊर्ध्वस्य प्रतिमा भवेत् । द्विविधा पादपीठस्था, पर्यकासनमास्थिता ||५||
भा०टी० - ऋषभादि तीर्थकरोनी प्रतिमाओना परिकरमां पाषाण संबन्धी वर्णसंकरता न होवी जोईये, अर्थात् मूल प्रतिमा जे वर्णना पाषाणनी होय ते ज वर्णना पाषाणनो बनेलो तेनो परिकर पण जोइये अने उंचाइमां सम आंगलनी संख्या प्रतिमाना मानमां शुभ नथी. उभादेवनी अने बेठेला देवनी आम वे प्रकारनी प्रतिमाओ होय छे, उभी प्रतिमा पादपीठस्थ अने बेठेली प्रतिमा पर्यकासनस्थ होय छे.
वाम- दक्षिणजंघोर्वोरुपर्यङ्के करावपि । दक्षिणो वामजंघायां तत्पर्यकासनं शुभम् ॥६॥
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भा०टी० - डावी जमणी साथल उपर जमणो डाबो पग (जमणी साथल उपर डाबो अने तेनी उपर डाबी साथल उपर जमणो पग मूकवो), ए पछी जमणी जांघ उपर डाचो अने पछी डाबी जांघ उपर जमणो हाथ मुकवो. आम करवाथी जे आसन बने छे, ते पर्यैकासन नामनुं शुभ आसन कहेवाय छे.
ऊर्ध्वस्थित प्रतिमानुं स्वरुप -
देवस्योर्द्धस्थितस्यार्चा, जानुलंबिभुजद्वया । श्रीवत्सोष्णीवयुक्ता च, छत्रादिपरिवारिता ||७|| भा०टी०—– ऊर्ध्वस्थित देवनी प्रतिनुं रुप बे भुजाओ जानु
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