________________
२३६
[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे कुक्षी पक्षेऽलिन्दयुक्ते, सिंहनामा स उच्यते । मुक्तकोणाकृतिः स्थित्या, पूर्णकर्णः सूर्यात्मकः ॥६०८॥ पृथुत्वं च तलोद्भवं, चतुःक्षणाग्रनिर्गमः । क्षणे क्षणे चतुष्किकायां, वितानं संवरणोदय ॥६०९॥
भा०टी०-ते शान्तमंडपना नव चोकियाना अग्रभागे चोकी वधारवाथी ७ 'नन्द' नामनो मण्डप बने छे. आगेनी चोकी हटावी बच्चेना त्रण चोकियानी बने तरफ १-१ चोकी वधारवाथी ८ 'सुदर्शन' मंडप बने छे. बगलमा फरि बे चोकियो वधारी १ चोकी आगे वधारतां जे मण्डप बने छे तेनुं नाम ९ 'रम्यक' मण्डप छे. आगलनी चोकिना बगलमां बे चोकी वधारी त्रण चोकियुं करवाथी १० 'सुनाभ मण्डप बने छे. पाछलना त्रण चोकियानी बगलमां बे चोकियो पाडवाथी ११ 'सिंह' नामक मण्डप बने छे, आ मण्डपनी स्थिति आगलना भागे कोणहीन बने छे, ज्यारे आगलनी बगलनी चोकियो वधारी पूर्ण मण्डप करवो ते १२ 'सूर्यात्मक' मण्डप कहेवाय छे.
आ त्रिक मण्डपोनो विस्तार नाल मण्डप जेटलो करको अने आगल-नृत्यमण्डपनी तरफ च्यार क्षणो वधारवा; प्रत्येक क्षणनी चोकियोमा वितान अने उपर सांमरण अथवा गुमटिओ करवी.
मण्डपोना संबन्धमा प्रकीर्णक वातो-गूढ
मण्डपनी भींत अने द्वार विषेभित्तिः प्रासादमानेन, पीठान्तोत्तानपट्टका । एकं वा त्रीणि वा कुर्यात्, द्वाराणि तत्र सर्वदा ॥६१०॥
भाण्टी०-गूढ मण्डपनी भींत प्रासादना माने करवी, पीठना मयाराथी उपरना पाटडा सुधी भींत ऊंची करवी, गूढमण्डपने द्वार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org