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________________ प्रासाद-लक्षणम् ] १७३ बीजे ९ अने त्रीजे १० कलाओ लागशे, जो तेज छंदनी विषमचारी १६मी रेखा हशे तो तेना प्रथमखंडे ८, बीजे २३ अने त्रीजे ३८; आम रेखाना नंबर अनुसारे उपला प्रतिखंडे १५-१५ नी वृद्धि थशे; केमके आ १६मी रेखानो विषमचारिणी तरीके १५मो नंबर छे, एज प्रमाणे तमाम रेखाओना पोताना प्रथम खंडथी द्वितीयादि खंडोनी कलासंख्या पोतपोताना नंबर प्रमाणे प्रथमखंडनी कलाओथी द्वितीयादि खंडोमां तत्तद्गुणी वृद्धि करीने कलाओ लगाडवी, आम १६ ने १६ गुणा करीने बनावेली २५६ रेखाभोने विष जाणवू. स्कन्धविभागे प्रथम करतां बीजीनी ३ कलाओ वधारवी, बीजी करतां त्रीजीनी ३ वधारवी, सर्वथी पहेली 'शशिनी' रेखानी २४ कलाओ स्कंधविभागे लागे छे त्यारे बीजीनी २७, त्रीजीनी ३०, चोथीनी ३३, इत्यादि एक एक रेखानी वृद्धिए स्कंधविभागे ३-३ कलाओनी वृद्धि करता जवं, ज्यां ज्यां कलाओ वडे रेखाओनी समाप्ति थाय त्यां उपर आमलसारो मूकवो. रेखासमाप्ति विषम भूमिकाए करवी, समभूमिए करवी प्रशस्त नथी, अर्थात् उदयरेखा अने वलनरेखाओनी विषम कलाओ ज्यां एकत्र थती होय त्या प्रासादनी रेखा छोडवी उत्तम गणाय छे. २५६ रेखाओना नाम१६ त्रिखण्डा-शशिनी, शीतला, सौम्या, शान्ता, मनोरमा, शुभा, मनोभवा, वीरा, कुमुदा, पद्मशेखरा, ललिता, लीलावती, त्रिदशा, पूर्णमण्डला, पूर्णभद्रा, भद्रांगी. १६ चतुष्खण्डा-शान्तिनी, शुभा, शांता, त्रिदिवा, देवदुर्लभा, बीभत्सा, शिवा, सौम्या, वीरभद्रा, नारायणी, सुषिरा, शेखरा, रम्या, पूर्णा, पूर्णभद्रा, विजया. १६ पञ्चखण्डा-लक्ष्मिणी, श्री, शंभवा, विदुरा, पूर्णमण्डला, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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