SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासाद-लक्षणम् ] पत्रशाखा च कर्तव्या, खल्वशाखा तथैव च । स्त्रीसंज्ञा च भवेच्छाखा, पार्श्वयोः पृथुभागिका ॥३०७॥ निर्गमश्चैकभागेन, रूपस्तंभे प्रशस्यते । पेटके विस्तरः कार्यः, प्रवेशचतुर्थांशकः ॥३०८॥ कोणिका स्तंभमध्ये तु, भूषणार्थाय पार्श्वतः । शाखोत्सेधचतुर्थांशे. द्वारपालौ निवेशयेत् ॥३०९॥ कालिन्दी वामशाखायां, दक्षिणे चैव जाह्नवी। गंगाकतनयायुग्म-मुभयोमदक्षिणे ॥३१०॥ गन्धर्वा निर्गमे कार्या, एकभागा विचक्षणैः । नन्दी च वामशाखायां, महाकालश्च दक्षिणे ॥३११॥ इति त्रिशाख संप्रोक्तं, पञ्चशाखमथ शृणु । भाण्टी-द्वार शाखाना विस्तारमा ४ भागोपाडीने त्रिशाख द्वारनी रचना करवी, भध्यमां २ भागनो पुरुषसंज्ञावालो रूपस्तंभ करवो, स्तंभनी बंने बाजुमां १-१ भागना विस्तार वाली स्त्रीसंज्ञा वाली पत्रशाखा तथा खल्वशाखा, आ बे शाखाओ करवी, रूपस्तंभनो निर्गम १ भागनो राखयो प्रशंसनीय गणाय छे, रूपस्तंभना पेटानो विस्तार प्रवेशना चोथा भाग जेटलो करवो, रूपस्तंभमां बने तरफ शोभा माटे कोणिओ काढवी. ___द्वार शाखनी उंचाइना चोथा भागमां नीचे बे प्रतिहारो करवा, डाबी शाखामां जमना अने जमणी शाखार्मा गंगानी मूर्तिओ बनावी, ज्यां गंगा छे त्यां गंगानुं युग्म अने जमनाना स्थाने जमनार्नु युग्म प्रतिहारनी डाबी अने जमणी बाजुमा करवं. निर्गम भागमा बुद्धिमान शिल्पिओए १ भागना गन्धर्षों बनाववा, डाबी शाखामां नन्दी अने जमणीमां महाकालने आलेखवा, आ प्रमाणे त्रिशाखद्वारनी वर्तना कही हवे पश्चशाखने सांभल ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy