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प्रथम खंडनो उपोद्घात कलिकाने अंगेनी प्रास्ताविक वातो प्रस्तावनामां कहेवाइ गइ छे हवे उपोद्घातरूपे प्रथम खंडना विषयोने स्पर्शता केटलाक सिद्धान्तोनी अहियां चर्चा करीशुं.
१-भारतीय प्रासादशिल्प कलिकाना प्रथम खंडनो प्रमुख विषय 'प्रासादशिल्प' छे, शिल्प शब्द नीचे गमे तेटला विषयो आवता होय पण 'प्रासादशिरूप'ने अंगे भारतीय विद्वानोए जे विषय जेटलो खेडयो छे तेटलो बीजो कोइ नहि, भारतना जे जे विभागोमां आर्य लोको पहोंच्या छे ते प्रत्येक देश खंडमां पोता प्रासादशिल्प निश्चित करी ते पद्धतिए पोताना पूज्य देवोनां धामो निर्मित कयाँ छे. प्रासादोनी पौराणिक जातिओ तथा कुलो गमे तेटला होय पण वास्तुशिल्प मुख्य त्रण भागोमां वहेचायेलं छे नागर १ वेसर २ अने द्राविड ३. नागर शिल्प उत्तर भारतव्यापक शिल्पy नाम छे, गोदावरीना दक्षिण तट बाजु- द्राविड शिल्प कहेवाय छे त्यारे जे नागरी तथा द्राविडी पद्धतियोना संमिश्रणथी उत्पन्न थयेल शिल्प पद्धतिने 'वेसरपद्धति' ए नाम अपायेल छे अने एनो प्रचार विन्ध्याचलथी दक्षिणे अने गोदावरीथी उत्तरे आ वचला प्रदेशमां थयो, आ त्रण शिल्पपद्धतियो उपरथी प्रासादोनी मुख्य नीचे प्रमाणेनी छ जातियो उत्पन्न थई
" कालिंगा नागरा लाटा, वाराटा द्राविडास्तथा। गौडा इति च षडेते, प्रासादाश्च सरेखकाः॥"
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