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प्रासाद-लक्षणम् ]
११७ उपरना ते खाडाओ घराबर करी देवा अने पछी प्रासादनुं चणतर शरु करतां प्रथम भीटनो थर चणवो.
भीटपीठ नीचे अने खरशिला उपर बच्चे जे थर आवे छे तेने शिल्पशास्त्रो 'भिट्ट' ए नामथी उल्लेखे छे. भीटनो पिंड (जाडाई) प्रासादना मानानुसारे ओछोवत्तो होय छे. शास्त्र कहे छे
शिलोपरि भवेद् भिट्ट,-मेकहस्ते युगागुला। अर्धाङ्गुला भवेद् , वृद्धिर्यावद्धस्तशतार्धकम् ।।२०८।। अगुलेनांशहीनेन, अर्धेनाऽर्धेन च क्रमात् । पञ्चदिक्-विशतिर्यावच्छताधं च विवर्धयेत् ।।२०९।।
भाण्टी-खरशिला उपर भीट होय छे, के जेनी जाडाई एक हाथना प्रासादे ४ आंगलनी होय छे अने ते पछी ५० हाथ सुधी हाथ प्रति अर्ध आंगलनी वृद्धिए पिंड रचाय छे, बीजी रीते १ हाथथी ५ हाथ सुधी एक आंगलनी, ६ थी १० सुधी पोणाआंगलनी ११ थी २० सुधी अर्ध आंगलनी अने २१ थी ५० सुधी पाव आंगलनी वृद्धिए भीटनो पिड राखतो. भीट एक बे अने त्रण पर्यन्त होइ शके छे, पहेलाथी बीजं अने बीजाथी त्रीजें भीट उंचाईमा ओर्छ करवु, तेमज जे भीटनी जेटली उंचाई होय तेना चोथा भाग जेटलो तेनो निर्गम (निकालो) करवो, भीट उपर पीठनुं चणतर कम्वु.
पीठपीठ अनेक प्रकारनां होय छे. प्रासादना मानने अनुसारे पीठनी मांडणी कराय छे, प्रासाद म्होटा माननो होय तो तेनी उंचाई अधिक होवाथी पीठना सामान्य थरो उपर गजथर-अश्वथर आदि बीजा थरो देइने तेने महापीठ बनावाय छे, पण प्रासादमान कनिष्ठ होय अने थोडा खर्चभां काम पतावq होय तो पीठ पण प्रण अथव! पांच साधारण थरोवालं बनावाय छे. शास्त्रमा कयुं छे के
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