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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे प्रथम भाग पूरो कर्यो, पण आ संदर्भनुं नाम शुं आपq एनो कोइ मार्ग जडयो नहि. शिल्प विषयक नाम करण करवामां आवे तो ज्योतिषनो विषय अलक्षित रही जाय जे विस्तारमा शिल्पनी अपेक्षाए कंइक ज उतरतो छे, बंने विषयने स्पर्शतुं नाम आपवामां पण कंइक ग्राम्यता जेवू लाग्युं एटले आ ग्रन्थने निर्नामक ज राखीने विधिविषयक ग्रन्थने पूर्ण करवानो निर्णय को अने एभाग पण बनते प्रयासे पूरो करी दीधो. त्रीजो भाग बीजा भागना एक परिच्छेद जेवो ज छे पण अधिक विस्तृत भिन्न भिन्न विषयात्मक होवाथी पांच परिच्छेदमां वहेंची एनो एक स्वतंत्र खंड बनान्यो छे.
बीजा त्रीजा खंडनी योजना अने काचो खरडो तैयार थइ गया पछी पाछी एना नामनी विचारणा उभी थइ, बीजा भागना नामने अंगे तो बहु विचारवानुं न हतुं, प्रतिष्ठाकल्प अथवा एने मलतुं बीजुं कोइ नाम आपवाथी समस्या पती जाय तेम हतुं, पण खास मुंजवण प्रथम खंडने अंगे हती, अमारे आ पहेलो भाग स्वतंत्र ग्रन्थरूपे नहि पण कोइ ग्रन्थना एक विभाग रूपे गोठववो हतो, जो विधिखंडनी प्रधानता गणी तेने अनुसरतुं कोइ नाम आपीये तो प्रथम खंड तद्दन ज अनिर्दिष्ट रही जाय तेम हतुं एटले अमुक विषय मूचक नामने पडतुं मूकी फलमूचक नामनी तरफ लक्ष्य दोयु अने तरत ज " कल्याणकलिका" नाम उपस्थित थयुं अने ए ज नामकरण नियत थयुं. ___ साइजने अंगे-आखो ग्रन्थ एकलो छपाववानो निश्चय हतो पण साइजनी बावतमा विचार करतां जणायु के कोइ पण एक साइजमां छपावतां बधाने अनुकूल नहिं पडे, बुक साइजमा होय तो विधि करावनारने अगवडता जनक थाय अने पोथी साइजमां होय तो शिल्प तथा ज्योतिषना अभ्यासीओने अनुकूल पडे नहि, ए कारणे
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