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________________ कल्याण कलिकानी प्रस्तावना. नामप्रदान. लगभग २५ वर्षथी शिल्प, ज्योतिष अने प्रतिष्ठाविधिनुं मार्गदर्शक पुस्तक लखवानी मित्रो तथा भाविकोनी प्रेरणा हती, पण अन्यान्य कार्योने लीधे ए विषयोमां बहु लक्ष जतुं न हतुं. चालु कार्योनो भार ओछो थतां थोडा वर्षो उपर ध्यान खेंचीने थोड थोडुं लखवा मांडयुं. ज्योतिष तथा शिल्पनां केटलांक प्रकरणो हिन्दीमां लख्यां पण खरां, परन्तु ए बने विषयो एटला विस्तृत अने साहित्यसंपन्न छे के तेमां शुं लेवं अने शुं छोडवुं ए एक समस्या थइ पडी, शारीरिक प्रकृति प्राय अस्वस्थ, आंखोमां मोतीयानी शरुआत अने अन्यान्य प्रवृत्तिओना कारणे अवकाशनी अल्पता, वली निजस्वभावनी विस्ताररुचिता इत्यादि वातोनो विचार करतां शिल्प अने ज्योतिषना स्वतन्त्र ग्रन्थोना निर्माणनी भावना कुंठित थइ गइ, छतां ए विषयोमां अत्यावश्यक विषयो उपर मुद्दासर लखवानो निर्णय अफर रह्यो. ए विषयमां टांचणो करवानुं चालु कर्यु अने प्रथम शिल्पनां केलांक आवश्यकीय प्रकरणो लखी नाख्यां अने शिल्पसंहिताओमां ज्योतिषनो विषय पण अवश्य होय ज छे एटले शिल्पना ज अनुसंधान रूपे धारणागति अने मुहूर्त लक्षण नामना परिच्छेदो लखीने तेनी साथे जोडी दीधा हवे मुद्रा विषयक एक ज एवो परिच्छेद रह्यो हतो के जेनो उपयोग विधिविधानोमां थतो होवा छतां विधिरूपे तेनुं विधिखंडमां स्थान न हतुं, तेथी मुद्रा परिच्छेदने ज्योतिषना अंतमां आपीने एकंदर १७ परिच्छेदोनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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