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प्रासाद-लक्षणम् ] गज आपवो, वृष अने गजना स्थाने सिंह आपवो, ध्वज सर्वमा आपवो, ज्यारे वृष पोताना स्थान सिवाय बीजे न आपो.
आयोना मुखनी दिशावारुण्याभिमुखो ध्वजः, सिंहो गजाभिदृष्टिकः । वृषभः प्राच्यभिमुखो, गजो याम्यामुखस्तथा ॥११६॥ संमुखा याम्योत्तराः शस्ता, अशस्ताः पृष्टतोमुखाः। स्वके स्वके वै स्थाने च, प्रशस्तास्त्रिषु दिक्षु च ॥११७॥
भा०टी०-ध्वज आय पश्चिमाभिमुख, सिंहाय उत्तराभिमुख, वृष आय पूर्वाभिमुख अने गज आय दक्षिणाभिमुख रहेल छे. आय सामो, डाबो अने जमणो शुभ छे, पण तेनी पूंठ शुभ नथी. आम पोतपोताना स्थानथी प्रत्येक आय व्रण त्रण दिशामां शुभ छे. उदाहरण तरीके ध्वज आय पश्चिमाभिमुख छे तो पूर्वाभिमुख वास्तुने संमुख, उत्तराभिमुखने जमणो अने दक्षिणाभिमुख द्वारने डाबो थाय जे शुभ छे, पण पश्चिमाभिमुखने ते पृष्ठतोमुख होइ शुभ नथी, एम दरेकना संबन्धमां जाणg. महागणेश्वराः प्रोक्ता, अष्टदिक्क्षेत्रपालकाः। वास्तुकर्मसु सर्वेषु, आया दिपतयोऽष्ट हि ॥११८॥ पूजिताः पूजयन्त्येव, निघ्नन्ति चाऽपदस्थिताः। साध्यक्षेत्रं च त्रिपुटं, प्रभिन्नं च नवांशकैः ॥११९॥ अष्टावाऽऽयसंस्थानानि, मध्ये स्यात् कुलदेवता। गृहस्याभिमुखाः शस्ता, मध्यमाश्च पराङ्मुखाः ॥१२०॥
भा०टी०-आयोने महागणेश्वरो अने आठ दिशाना क्षेत्रपालो कथा छे. सर्व वास्तुकर्मोमा आयो आठ दिशापालो छे. ए यथास्थाने राखेला सुख देनारा छे अने वयं-स्थाने रहेला हानिकारक थाय छे. वास्तुक्षेत्रमा ऊभी आडी चार चार लीटी खंचीने तेना नव भागो, पाडवा, आठ दिशाना आठ भागो आयोनां स्थानो अने
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