SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे वास्तु परिभ्रमणरवी कन्यातुलालिस्थे, पूर्वा शिरःसमाश्रिता । धनौ च मकरे कुम्भे, दक्षिणेन व्यवस्थितः ॥६१॥ मीने मेषे वृषे चैव, पश्चिमेन समाश्रितः । मिथुने सिंहे कर्के च, युत्तरेण व्यवस्थितः ॥६२॥ सर्वकालक्रमोऽयं च, राशिमध्ये ह्यतः शृणु । देवताक्रमयोगेन, स वास्तुः सरते महीम् ॥६३॥ यत्र भानुस्तत्र शिरो, लक्षितव्यं रविक्रमात् । अन्यथा कुरुते दुःग्वं, शिरो वास्तोरलक्षितम् ॥६४॥ देवागारं गृहं यत्र, प्रकुर्यात् शिरःसम्मुम्बम् । मृत्यु रोग भया नित्यं, शस्तं च कुक्षिसम्मुखम् ॥६॥ भा०टी०-कन्या, तुला अने वृश्चिकना सूर्यमा वास्तुपुरुष पूर्वमा मस्तक करीने रहे छे. धन, मकर अने कुंभना मूर्यमां वास्तु दक्षिणमा रहे छे. मीन, मेप अने वृषभना सूर्यमां वास्तु पश्चिमाश्रित होय छे तथा मिथुन, कर्क अने सिंहना सूर्यमा वास्तुनु मस्तक उत्तरे होय छ, वास्तुना राशिभ्रमणनो सावकारलेक एज क्रम छ, असं न्धमा विशेष सांभल-- वास्तु स्वगत देवताओनी साथे अनुक्रम पृी उपर फरे छ. जे दिशामां मरी होय तेनो निर्णय काग कर दिशाम वास्नुर्ने मस्तक आवे तन्नो निर्णय करी लेश, सूप क्रमयी वास्तुना मस्तकने जाण्या विना तना वर्जित अंग भागम खात आदि करनारने दुःखदायक पाय वास्तुना मस्तक सनरक द्वारवाला देवालय, वर आदि करे त म मरण, रोमा अन थया को छे.ज काले जे दिशामा वास्तुनी कुक्षि होय ते काले दिशाना मुरववाला देवालय अने घर आदिना आरंभ करवात श्रध. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy