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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे सूत्रबाहोऽष्टदेवाश्च, ईशादिषु प्रदक्षिणम् । तासां पदविधिर्नास्ति, केवलं पूजनं स्मृतम् ॥३४॥
भा०टी०-प्रासादोमां, घर आदिमां, पुर तथा ग्रामनी आबादी करवामां चोरस क्षेत्र होइ चोरस वास्तु पूज. पुष्पकजातिना प्रासादो लंबचोरस होय छे, माटे जेवू लंबचोरस प्रासादतल होय तेवूज लंबचोरस वास्तु पूजq. वावडी, कूप, क्षेत्रो, प्रतिमाओ अने कैलासजातिना सर्व प्रासादो ए गोळ क्षेत्रो छे, ए गोळ क्षेत्रोमां गोळ वास्तुनुं पूजन करवू. मणिकजातिना प्रासादो लंबगोळ तलना होइ तेओमां लंबगोळ वास्तु पूजq. अष्टभद्री अने अष्टकोणी प्रासादोमां अष्टास्त्र अने सर्व तलावोमां अर्धचन्द्राकार वास्तु पूजवू. उपर्युक्त छ प्रकारना वास्तुक्षेत्रोमा ४५ देवताओ होय छे. १३ देवता वास्तुपदनी अंदर अने ३२ देवताओ वास्तुसूत्रनी बहार ईशानकोणथी बाह्यभागमा मांडीने ८ दिशाओमां अनुक्रमे ८ देविओ होय छे. आ बाह्यस्थ देविओने माटे पदविधान नथी, पण केवल पूजाविधान ज कहेल छे. वास्तुपददेवता
वास्तुपदो सर्व मलीने ३२ प्रकारनां होय छे. १थी १० सुधीनां अनुक्रमे अने ३२ मुं सर्वतोभद्र आम ११ वास्तुओनो नामनिर्देश अने कया काममां कयुं वास्तु पूजg, ए बधुं उपर कहेवाइ गयु छे, पण आ बधा वास्तुओमां देवतापद भोग अने तेमनी विन्यास-विधि लखवा जेटलो अवकाश लइ शकाय तेम नथी तेथी जीर्णोद्धार, नगरनिवेश, मंडपनिवेश अने प्रासादनिवेशमां जेमनी खास पूजा करवी आवश्यक होय छे एवा ७ थी १० पर्यन्तना ४ वास्तुओनी ज विशेष चर्चा करवी उपयोगी समजीये छीये. ४९ पदात्मक मरीचिगण वास्तु (जीर्णोडारे पूजनीय)
चतुष्पदो भवेद् ब्रह्मा, त्रिपदा अर्यमादयः ।
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