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________________ દર [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे चतुःषष्टिपद के एकाशीतिपदनी रचना तो सर्व ग्रन्यकाग एज प्रकारे ९ + ९ अने १० + १० ऊभी आडी रेखाओ चीन बनाववानुं कथन कर्यु छे, छतां वंशो, उपवंशो, रज्जुओ, शिराओ. अने तज्जन्यवेधोने अंगे मतभेदो छे, पण ते सर्वनुं वर्णन करवानुं आ उपयुक्त स्थल नथी तेथी भिन्नभिन्न ग्रन्थोना अभिप्रायदर्शक से चार अन्य नकशाओ आपीने ए परिच्छेदने समाप्त करीये छीये. निर्वाणकलिकानुसारी ६४ पद तथा ८१ पदना नकशाओ पृष्ठ ६१ - ६२ उपर आप्या छे, एज बने नकशाओ बृहत्संहितानुसारे पृष्ठ ६३ अने ६४ उपर आप्या प्रमाणे बने छे. अपराजितपृच्छा अने समरांगणसूत्रधारमा थीये भिन्नता छे, जे नकशाओ उपरथी स्पष्ट जणाशे. २ निर्वाणकलिकोक्त - १ पद, वास्तूमण्डल चरकी पिलिपिच्छा ctur पं दिं । आ भ अ आ-/ आ व व शे ध् सो मु in h Lyhyes Jain Education International व्रा रो धं आ ज् मा ध स्कन्दा ELF ध म म G ध ब्र ब सू स भ ॐ ほ शो असुर व स जम्भा ऋ सा r ब्र भृ ह 14 वि मि मि इ रु रु इ रु.दी रुदा भिं मि मि इ. ज इज मृ पु.द सु द्रों व्या सा वि स वि वि For Private & Personal Use Only पा विवि गृ po पू विं य गं भृ 124 سول 3 अर्थमा www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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