SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [कल्याण-कलिका-प्रथमस डे न्तर अने कोणोना ४-४ मली ८ तथा सर्व मली १३ महामों निर्वाणकलिकोक्त ६४ पदना वास्तुमां उपजे छे. ब्रह्माना स्थानथी ईशानादि अभ्यन्तर अने बाह्य कोणोमांना ४-४ थइ ८ महामों निर्वाणकलिकाना मते ८१ पदना वास्तुपदमां उपजे छे. मर्मो-पसूत्रो, पंचसूत्रो अने चारसूत्रोना समागम स्थान 'मम' नामथी ओळखाय छे. निर्वाणकलिकाना ६४ पदना वास्तुमां षट्सूत्रसंपातो १२, पंचसूत्रसंपातो ८ अने चतुःसूत्रसंपातो २४ होय छे. आ मर्मोने शास्त्रमा षट्क, पंचक अने चतुष्कना नामोथी उल्लेख्या छे. त्रिसूत्रसंधियोने शिल्पशास्त्रो त्रिक कहे छे अने आनो उपमर्मोमा समावेश करे छे. निर्वाणकलिकाना ६४ पदवास्तुमां आवा उपमर्मो २० होय छे. उपमर्मान्तको-वास्तुविद्यामां बाह्यकोणगत ४ त्रिकोने उपमर्मान्तक ए नामथी उल्लेख्या छे. जे वास्तवमा उपमर्मों ज छे. निर्वाणकलिकाना ६४ पदना वास्तुमां आ उपमर्मान्तको ४ उपजे छे. निर्वाणकलिकोक्त ८१ पदना वास्तुमा 'षट्कमर्मो' २४ छे. पंचकर्मों आमां नथी. 'चतुष्कमर्मों' ३२, उपमर्म त्रिको १६ अने उपमर्मान्तक त्रिको २० होय छे. ए उपरान्त निर्वाणकलिकाना ८१ पदना वास्तुमां ५ 'चतुष्कमर्मों' केवल रज्जुजनित छे. जे अशुभ गणाता नथी. एवं वास्तुविद्यामां कथन छे. देवासनो, द्वारमध्यो अने पद्मध्यो दरेक वास्तुपदना देवासनो तथा द्वारमध्योने मर्म अने पदमध्योने उपमर्म गणवामां आवे छे. पण पदमध्यने षोडशपदवास्तुमा विशेष महत्त्व अपाय छे. कारणके ते वास्तुमा पदमध्यने 'देवासन' गण्डे छे. ए विषयमां नीचेना लोको प्रकाश पाडे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy