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शिला-लक्षणम् ६४ पदना वास्तुमंडलमां आ महामर्मस्थानो मध्यमां अने चारे दिशाविदिशाओमां होय छे. जुओ६४ पदवास्तुमंडलनो नकशो. (पृ. ४९) ___ ए सिवाय वास्तुपुरुषना मस्तक, मुख, हृदय, बे स्तनो अने नाभि ए छ स्थानोने पण · महामर्म' कह्या छे. जुओ नीचेनो श्लोक
मुखे हृदि च नाभौ च, मूनि च स्तनयोस्तथा । मर्माणि वास्तुपुंसोऽस्य, षण महान्ति प्रचक्षते ॥१०॥
भा०टी०-वास्तुपुरुषना मुख, हृदय, नाभि, मस्तक अने बन्ने स्तनो आ ६ स्थानोमा ‘महामर्म' कहे छे.
वास्तुविद्यामां वंश, अनुवंश, शिरा-रज्जुना सूत्रोनो विस्तार भिन्नभिन्न वास्तुपदोने अंगे भिन्न भिन्न प्रकारनो बताव्यो छे, जेर्नु विधान नीचे प्रमाणे छे
पदस्य गृहकृत्यंशः, सूत्रं स्याद् वेदपष्टिके । एकाशीतिपदेऽौशो, वस्वंशः शतके पदे ॥११॥ सूत्रवेधं तु सर्वेषां, स्तम्भमध्यादिषु त्यजेत् । मर्मादीनि निषिद्धानि, वास्तुकर्मण्यनेकधा ॥१२॥
भा०टी०-६४ पदना वास्तुमां पदनो सोलमो भाग, ८१ पदना वास्तुमा पदनो १२ बारमो अने १०० पदना वास्तुमा पदनो आठमो भाग सूत्रवेध होय छे ते वेध सर्ववास्तुओमां टाळवो. एटले के सूत्रने थोडं पूर्व अथवा उत्तरमा राखीने स्तंभ रोपवो, जेथी वेध न थाय. ए सिवाय वास्तुकर्ममां मम आदि अनेक वस्तुओ वर्जित छे.
महामर्मो-उपर कहेवायुं छे के दिशाविदिशामा आठ सूत्रो ज्या मळे छे, त्यां महामर्म उपजे छे. निर्वाणकलिकाकारना मते आ 'महामम' ६४ पदना वास्तुमा १३ अने ८१ पदना वास्तुमा ८ होय छे. ब्रह्माना पदमां ब्रह्मानी चार दिशाओमा ४ अने ब्रह्माना अभ्य.
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