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________________ शिला-लक्षणम् ] शिराओशिराः कर्णगता याः स्यु-स्ता नाडयः परिकीर्तिताः। पदस्य षोडशो भाग-स्तत्प्रमाणं प्रकीर्तितम् ॥२॥ भा०टी०-कोणगत जे रेखाओ छे. ते 'शिरा' आ नामे ओळखाय छे. आ शिराओना व्यासर्नु परिमाण 'पद' ना सोलमा भाग जेटलं कर्तुं छे. महावंशो महावंशो प्राक्प्रतीच्यौ, याम्योदीच्यौ च मध्यमौ । प्रमाणं पञ्चमो भागः, पदस्योदाहृतं तयोः ।।३।। भा टी०-मध्यनी पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण उत्तर लंबी बेबे रेखाओगें नाम 'महावंश' छे. आ महावंशोनो व्यास वास्तुना एक पदना पांचमा भाग जेटलो होय छे. वंशो अने अनुवंशो वंशास्तेऽस्मिन्समुद्दिष्टा, रेखा याः स्युर्मुखायताः। यास्तिर्यगायता रेखा-स्तेऽनुवंशाः प्रकीर्तिताः॥४॥ भा०टी०-मुखनी दिशा तरफ लांबी रेखाओने अहीं 'वंश' कहे छे अने तिर्यक् लांबी रेखाओ ' अनुवंश' ए नामथी प्रसिद्ध छे. मर्म अने उपमर्म संपाता ये स्युरेतेषां, मर्म त-संप्रचक्षते । उपमर्माणि तान्याहुः, पदमध्यानि यानि च ॥५॥ भा०टी०-शिरा, महावंश, वंश अने अनुवंश ए पैकीना बेनो त्रणनो अथवा चारनो ज्यां संपात (संगम ) थाय ते स्थानने 'मर्म' अने ‘पद 'ना जे मध्य भागो छे तेने ' उपमर्म' कहे छे. वंश आदिन विस्तारमान भागोऽष्टमोऽथ दशमो, द्वादशः षोडशोऽपि च । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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