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शिला-लक्षणम् ]
३७ वाळी, रेतीवाळी, भागेली, प्रमाणमां न्हानी के म्होटी इंट शिलारूपे स्थापवाना काममा लेवी नहि. शिलानी लंबाई-पहोलाई-जाडाई__ गृहवास्तुना निर्माणमा प्रतिष्ठित कराती शिलानुं परिमाण वर्णपरत्वे भिन्न भिन्न छे. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अने शूद्रना गृहवास्तुनी शिलानी लंबाई अनुक्रमे २१, १७, १३, ९ आंगळनी होय छे, तेनी पहोळाई लंबाईथी अडधी अने जाडाई पहोळाईथी अडधी होवी जोइये. देवालयनी शिला सामान्य रीते एक हाथनी लंबाई पहोळाईनी होवी जोइये. देवालयनी नन्दादि ८ शिलाओ
देवालयना मानानुसार तेनी शिलाओगें मान होय छे. देवालयतुं मान १ हाथथी ५० हाथ सुधीर्नु होय छे, तेथी शिलाओगें मान पण तदनुसार भिन्न भिन्न होय छे. तेमां पण नन्दादि ८ शिलाओर्नु मान अने मध्यमां प्रतिष्ठाप्य 'धरणीशिला' नुं मान जुहूं पडे छे.
१-२-३-४-५ हाथना देवालयोनी नन्दादि ८ शिलाओ ७-९-११-१३-१५ आंगळना माननी, ६-७-८-९-१० हाथना देवालयनी नन्दादि शिलाओ १६-१७-१८-१९-२० आंगळनी, ११-१२-१३-१४-१५-१६-१७-१८-१९-२० हाथना देवालयोनी शिलाओ २०-२१॥-२२-२३-२३॥-२४॥-२५/-२६ -२६-२७।।-आंगळनी अने २१-२२-२३-२४-२५-२६-२७ -२८-२९-३०-३१-३२-३३-३४-३५-३६-३७-३८-३९-४० -४१-४२-४३-४४-४५-४६-४७-४८-४९ अने ५० हाथना देवालयनी नन्दादिशिलाओ अनुक्रमे २८-२८॥-२९-२९॥-३० -३०॥-३१-३१॥-३२-३२॥-३३-३३॥-३४-३४॥--३५३५॥-३६-३६॥-३७-३७॥-३८-३८-३९-३९॥-४०-४०॥
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