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________________ शिला-लक्षणम् ] मा०टी०-१ हाथना प्रासादे अर्धा आंगळनो कूर्म कह्यो छ, १ थी १५ हाथ सुधी प्रति हाथ अर्धा आंगळनी वृद्धि करवी. १६ थी ३२ हाथ सुधी प्रति हाथे पाव आंगळनी अने ३३ थी ५० हाथ सुधी हाथ दीठ बे आनी आंगळनी वृद्धि करवी. आ प्रमाणे वृद्धि करतां ५० हाथना प्रासादे १४ आंगळनो कूर्म थशे. आ कूर्मनुं मध्यमान कर्तुं छे. आमांथी चतुर्थाशहीन करतां कनिष्ठ अने आमां चतुर्थीश वधारतां कूर्मनुं ज्येष्ठमान थशे. आ प्रकारे कूर्मनुं मान त्रण प्रकारर्नु फयुं छे. सोनानो अथवा रूपानो कूर्म सर्वपापोनो नाश करनारो छे. आवा उत्तम कूमने करावीने प्रतिष्ठित करनार यज्ञना फलने प्राप्त करे छे. कूर्मने प्रतिष्ठित करतां पहेलां विधिपूर्वक पञ्चामृतवडे तेने स्नान करावयु, श्रेष्ठधूप अने सुगंधीपुष्पोथी पूजवो. तथा तल अने जवोना होमनी पूर्णाहुति देवराबवी. शुभ मुहूर्ते वेदध्वनि तथा वादिलोना मांगलिक शब्दपूर्वक कूर्मने वास्तु नीचे स्थापन करवो. ६. शिला-लक्षण चैत्यपादात्मिकाः प्रोक्ताः, शिलाः पञ्चाऽथवा नव । तासां लक्षण-मानादि, निरूप्य स्थापनं शुभम् ॥२३॥ भा०टी०-शिलाओ प्रासादना पगरूपे गणाय छे. संख्यामां ते ५ अथवा तो ९ कही छे. आ शिलाओनुं लक्षण-प्रमाणआदि तपासीने शुभलक्षणान्वित अने मानोपेत शिलाओ स्थापवी शुभ छे. 'शिला' शब्दनो अर्थ कोइ पण घर अथवा देवालयना पायामां चणातो प्रथम पत्थर एवो थाय छे. ए प्रथम पत्थरने विधिपूर्वक शुभ समये यथास्थान स्थापन करवो ते शिलान्यास' छे, 'दाक्षिणात्य शिल्प-पद्धति'मा आ 'शिला'नुं नाम 'प्रथमेष्टका' आपेलुं छे. शिलाओनी संख्या आ शिलाओनी संख्याना विषयमा पूर्वग्रन्थकारोनी एकवाक्यता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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