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________________ कूर्मशिला लक्षणम् ] केटलाक मारवाडी मिस्त्रीओ पण प्रासादनी कूर्मशिला उपर योगनाल मूकावे छे अने तेने देवी बेठक उपर लावीन छोडे छे, आ पद्धति उत्तरभारतीयशिल्पनी नहि पण दाक्षिणान्य छे. आ प्रणालिका मौलिक केवी छ अन एन अपनावनागओए केवी विकृत करी नांखी छे, ए वस्तुने जणाववा माटे अमो अत्र में लक, पट्टनिन तेना खरा रूपमा आपर्वा योन्य धार्ग ईचे. प्रमाण है युगास्ने तृत्तमानं तु. मानमुत्रं विधाय? तदन्याकृतिगेहानां. तनन्नमंभवभयान ! ८ । मात्वा विधाय मृत्राणि, बंदानं वानमाचरेत् । अथाधारशिलां न्यस्य. गर्ने म्मिन कलहां न्यसेन । पद्मानि कूर्मयुक्तानि, योगनानं ननो पनि । भा०टी०-उक्त मानवाळा चोन्म बास्त्रमा बीजा आकारवाला गृहवास्तुओमां ते वास्तुभृमिना नविन आकारने मृत्रवडे मापीने तेमां चोरस खान कर. ने बाहामां आधारभिला स्थापित करवी. शिला उपर कलश, कलम उपर कमल अने कमल उपर योगनालनो न्यास करवो. आधार शिलानुं मापपीठस्य तारार्धततां तदर्ध-विस्तारयुक्तां प्रकरोतु मन्त्री। वा पादपद्मस्य ततां तदर्ध-तुङ्गामथाधारशिलां सुलग्ने॥१०॥ भावि प्रासादपीठादि-मानेन परिकल्पयेत् । आधाराख्यशिलाकुम्भ-पद्मकूर्मादिमानकम् ॥११॥ भा०टी०-" सारा लग्नमां शिल्पिए आधारशिला तैयार करवी. आधारशिलानी लंबाइ, पीठनी ऊंचाइथी अडधी अने पहोलाइ तेथी अडधी राखवी अथवा आधारशिलानी लंबाइ पायाना विस्तार जेटली अने पहोळाइ तेनाथी अडधी राखवी अने तेनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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