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कर्मसाहित्य के सूक्ष्मबुद्धिगम्यकर्मप्रकृत्यादि शास्त्रों के प्रखरज्ञाता
सर्वहितवत्सल तपगच्छगगनाङ्गण दिवाकर २७० मुनिवरों के परमगुरु तप-त्याग-वैराग्य-संयममूर्ति बहुजनश्रद्धेय सिद्धांत महोदधि पूज्य आचार्यदेवेश श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराजा !
आप के अगण्य उपकार की नगण्य कृतज्ञता के रुपमें यह हिन्दी ललितविस्तरा-विवेचन आप के पावन करकमलों में अर्पित करते हुए, मुझे आप अधिकाधिक सुकृत बल दें ऐसी प्रार्थना.....
- भानुविजय (आ. भुवनभानुसूरिजी)
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