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(ल०-विशिष्टध्येयध्यानं विद्याजन्मबीजम् - ) इहोच्छ्वासमानमित्थं, न पुनर्थ्येयनियमः । यथापरिणामेनैतत्स्थापनेशगुणतत्त्वानि वा स्थानवर्णार्थालम्बनानि वा, आत्मीयदोषप्रतिपक्षो वा । एतद् विद्याजन्मबीजं, तत् पारमेश्वरम्, अतः इत्थमेवोपयोगशुद्धेः । शुद्धभावोपात्तं कर्म्म अवन्ध्यं, सुवर्णघटाद्युदाहरणात् । एतदुदयतो विद्याजन्म कारणानुरूपत्वेन ।
(पं०-) 'एतद्विधे 'त्यादि, एतत् = प्रतिविशिष्टध्येयध्यानं, विद्याजन्मबीजं = विवेकोत्पत्तिकारणं, ‘तद्' इति शास्त्रसिद्धं, ‘पारमेश्वरं ' = परमेश्वरप्रणीतम् । हेतुमाह 'अत: ' = प्रतिविशिष्टध्येयध्यानाद्, 'इत्थमेव' = विद्याजन्मानुरूपप्रकारेणैव, 'उपयोगशुद्धेः' = चैतन्यवृत्तेर्निर्मलीभावात् । एतदेव भावयति 'शुद्धभावोपात्तं' शुद्धः अधिकृतकायोत्सर्गध्यानादिरूपो भावः, तदुपात्तं 'कर्म्म' सद्वेद्यादि, 'अवन्ध्यम्' अवश्यं शुद्धभावफलदायि । कथमित्याह 'सुवर्णघटाद्युदाहरणेन' = यथा सुवर्णघटो भङ्गेऽपि सुवर्णफल एव, 'आदि' शब्दाद् रूप्यघटादिपरिग्रहः, तथा प्रकृतकर्म्मापीति । यद्येवं ततः किम् ? इत्याह, 'एतदुदयतः ' शुद्धभावोपात्तकर्म्मोदयतः, 'विद्याजन्म' विवेकोत्पत्तिलक्षणं कुत इत्याह 'कारणानुरूपत्वेन' कारणस्वरूपानुविधायी हि कार्यस्वभावः, ततः कथमिव शुद्धभावोपातं कर्म्म न शुद्धभावहेतुः स्यात् ? (प्र०..... कर्म्म अशुद्धभाव०)
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अब अष्टोच्छ्वास-प्रमाण कायोत्सर्ग की आचरणा में देखा जाए तो यह कायोत्सर्ग आचरितप्रमाण से समर्थित है, क्योंकि इसमें 'आचरित' के लक्षण मिलते हैं; ये इस प्रकार, यह कायोत्सर्ग सावद्य नहीं है, निरवद्य निर्दोष है, क्यों कि सूत्रार्थ के साथ इसका कोई विरोध नहीं है। प्रस्तुत सूत्र का अर्थ पहले कहा गया है, और जहाँ तक 'हुज्ज मे काउस्सग्गो' का अन्यथा अर्थ करने में कोई विशेष गुण (लाभ) न हो, वहाँ तक अष्टोच्छ्वासमान कायो० ऐसा अर्थ करने में कोई विरोध नहीं है । कायोत्सर्ग का 'आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण ध्यान नहीं किन्तु मात्र हस्त लम्बा कर खड़ा रहना,' ऐसा अर्थ करने में कोई विशेष गुण नहीं है । इसलिए आठ श्वासोच्छ्वासप्रमाण ध्यानयुक्त कायोत्सर्ग करना यह अविरुद्ध है । दूसरी बात यह है कि यह अन्य आचार्यो के द्वारा निषिद्ध भी नहीं किया गया है एवं बहुजनों ने मान्य भी कीया है । इतनी प्रासङ्गिक चर्चा पर्याप्त है। कायोत्सर्ग यहां पूर्वोक्त प्रमाण का ही कर्तव्य है ।
कायोत्सर्ग में ध्यान के अनेक विषय
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यहाँ इतना सिद्ध हैं कि कायोत्सर्ग नियतप्रमाण आठ श्वासोच्छ्वास का है, किन्तु कायोत्सर्ग में ध्यान का ध्येय क्या अर्थात् ध्यान किसी विषय का करना यह नियत नहीं है। ध्येय तो आत्मा के परिणाम के अनुसार होता है; वह तीर्थस्थापक भगवान के गुण भी हो सकता है, अथवा उनसे कथित जीवाजीवादि तत्त्व, या स्थान-वर्णअर्थ- - आलम्बन, अथवा अपने दोषों की प्रतिपक्षी भावनाएं, इत्यादि कोई भी विषय ध्यान का हो सकता है।
नियत ध्येय के ध्यान का प्रभाव :
ऐसा किसी नियत ध्येय का ध्यान यह विवेक की उत्पत्ति का कारण है। शास्त्र - सिद्ध इस प्रकार का ध्यान परमेश्वर अरिहंत प्रभु द्वारा प्रतिपादित किया गया है । कारण यह है कि ऐसे नियत ध्येय के ध्यान से विवेकोत्पत्ति द्वारा उसके अनुरुप प्रकार से ही उपयोग शुद्धि यानी चैतन्यवृत्ति का निर्मलीकरण होता है । जिस आत्मा का जितना ध्यानबल होगा, उसे उतनी विवेकशक्ति प्राप्त होगी और तदनुसार अपनी आन्तर परिणति शुद्ध
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