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२९७० सम्माण० बोहिलाभ० निरुवसग्गवत्तियाए का अर्थ । २८४ 'एवमाइएहिं' २१७५ प्राप्त बोधिलाभ हेतु भी कायोत्सर्ग क्यों ?
* नमस्कारमात्र से कायो ० पूर्ण नहीं । * बोधिलाभ संरक्षण-विकासार्थ भी कायोत्सर्ग
* अग्नि आदि अधिक आगार * वीतरागभाव तक बोधिलाभ का विकास
'आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउरसग्गो' * 'सद्धाए' का अर्थ श्रद्धा - स्वाभिलाष, चित्त- २८६ प्रस्तुत आगारों का विभागीकरण प्रसाद, * जलशोधक मणि का दृष्टान्त
भक्त को आगार की अपेक्षा क्यों ? २१७३ बौद्धमत से कर्म व तत्फल का सम्बन्ध औपचारिक । आज्ञा 'ऊसासं न निरंभई' ... । आत्मा के षट्रस्थान
* अविधिमरण अप्रशस्य, 'मेहाए' का अर्थ, मेधा - ग्रन्थग्रहणपटु परिणाम, 'सव्वत्थ संजमं' । महान शास्त्रोपादेयपरिणाम ।
२८७ 'जाव अरिहंताणं ... वोसिरामि' * रोगी के उत्तम औषध के प्रति आदर का दृष्टान्त २८८ कायोत्सर्ग के जघन्यप्रमाण ८ श्वासोच्छ्वास की २०४ धीहए' का अर्थ, धृति - प्रणिधान, विशिष्ट-प्रीति । सिद्धि * चिन्तामणिप्राप्ति का दृष्टान्त ।
*कायोत्सर्ग में उच्छवासमान का खण्डन - मण्डन * 'धारणाए' का अर्थ, धारणा - अविस्मृति, २८९ द्विविध कायोत्सर्ग : चेष्टाकायोत्सर्ग.
वरतुक्रमरमृति, मोती-माला के पिरोने का दृष्टान्त अमिभव-कायोत्सर्ग । २७५ 'अणुप्पेहाए' का अर्थ, अनुप्रेक्षा = तत्त्वार्थ-अनु- २९० आगमगाथा में वन्दन कायोत्सर्ग का समावेश चिन्तन, रत्नशोधक अग्नि का दृष्टान्त
२९१ प्रामाणिक आचरणा-प्रमाण के लक्षण २७६ श्रद्धादि पांचों 'अपूर्वकरण' संज्ञक महासमाधि के २९२ कायोत्सर्ग में ध्यान के अनेक विषय बीज
२९३ नियत ध्येय से ध्यान का प्रभाव श्रवण-पाठ-प्रतिपत्ति-इच्छा-प्रवृत्ति-विघ्नजय-आदि शुभाशुभभाव से अनुरूप कर्म का बन्ध २७७ 'वडढमाणिए' का अर्थ, श्रद्धादि पांच की क्रमिक २९४ विवेक व क्रिया से मोक्ष: उत्पत्ति-वृद्धि
'व]गृहकृमे'.... ५ श्लोक २१. 'ठामि' का अर्थ, क्रियाकाल-निष्टाकाल का ऐक्य २९४ कायोत्सर्ग पुरा करने के बाद
निश्चय से * व्यवहार से दोनों का भेद २९५ मन्दिराधिपति प्रभु की ही स्तुति २१७४ बिना श्रद्धा - 'करेमि' बोलना मुषावाद
चतुर्विंशतिरतव (लोगस्सउज्जोअगरे) सूत्र श्रद्धादि गुणों की कई कक्षाएँ
२९५ पहली गाथा, 'लोक' शब्द का अर्थ पञ्चास्तिकाय * श्रद्धादि के लिङग आदरादि
२९६ धम्मतित्थयरे जिणे अरिहंते' की व्याख्या : * इक्षु - रस - गुड आदि के साथ श्रद्धादि की कित्तइरसं चउवीसं पि केवली' की व्याख्या तुलना कषायादि कटुता-निवारण पूर्वक शम-माधुर्य- २९७ विशेषणों की सार्थकता का उपपादन 'धम्मसम्पादन
तित्थयरे' क्यों दिया ? २८१ कायोत्सर्ग का महत्त्व
'लोगरस उज्जोअगरे' क्यों दिया ? सदनुष्ठान के लक्षण :- आदर, करणप्रीति, २९८ जिणे' पद क्यों दिया गया ? विघ्नाभाव, सम्पदागम, जिज्ञासा, तज्ज्ञसेवा ।
अवतारवाद का खण्डन । अप्रेक्षावान् का मृषा उच्चारण ।
२९९ जिन के अनेक प्रकार : अरिहंते क्यों ? अन्नत्थऊससिएणं .... सूत्र
केवली क्यों दिया ? २८३ कायोत्सर्ग के आगार
३०० विशेषण की सफलता ३ रीति से * सुहुमहिं अंगसंचालेहिं
३०२ २४ अरिहंत - प्रत्येक के गर्भकाल में विशेषता.
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