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________________ २३९ आगमन * वर्णविभागादि तात्त्विक नहीं २४८ पुरुष दृष्टात | घट दृष्टांत । अद्वैतमतसमर्थक वचनों का खंडन, * अनेक सापेक्षता की सिद्धि । दृष्टेष्टाविरुद्ध ही आगमप्रमाण २४९ वासनामूलक विविध व्यवहार का बौद्धमत २३४ दृष्टेष्ट-विरुद्ध के स्वीकार में प्रवृत्ति-हानि आदि वस्तु निरंश-एक स्वभाव-क्षणिक । दोष २५० बौद्धमतखंडन, वासनाओं का मल अनेक विषय । २७५ विरुद्ध वचनों में दृष्टेष्टाविरोध ही कसौटी २५१ बौद्धों के स्वभावमात्र समर्थन का खंडन ब्राह्मणभक्त का दृष्टान्तः विचारसापेक्ष आगमनिर्दोषता एक स्वभाव वस्तु से अनेक वासनाजनन असगत २३६ कृपतित का दृष्टांत भी दृष्टांत मात्र है २५२ उपादान भेद वश व्यवहारभेद' बौद्धयुक्ति, उपादान कूपोत्पन्न के उद्धार की आपत्ति `पूर्वक्षण' की वासना, यही व्यवहारनियामक । २३७ प्रवृत्ति नियामक त्रिकोटिपरिशुद्ध विचारशुद्धि २५३ निमित्तभेद के बिना व्यवहारभेद अशक्य का जैनमत त्रिकोटि दो प्रकार की है, १. कष-छेद-ताप एवं * अनेक व्यवहार में सहकारी के अनेक स्वभाव २. आदि-मध्य-अन्त तीनों में अविसंवाद * हेतु बौद्धों के स्वाभ्युपगम में विरोध-सिद्धांत २३८ उत्तमतत्त्वप्राप्ति के ३ हेतु स्वीकार असङ्गत आगम, अनुमान व ध्यानाभ्यासरस २५४ अनेकान्त पक्ष में दूषण नहीं, आगम आप्तोक्त मान्य | आप्त कौन ? जगद्वैचित्र्य विविध व्यवहार से सिद्ध २३९ नमस्कार के विषय बहुत, तो आशयस्फातिवश फल * एकान्त पक्ष में कई कार्य निर्हेतुक होंगे । अतिशयित । २५५ अनेक-कार्य-करण-एक स्वभाव मानने में दोष २४० बहु ब्राह्मणों को एक रुपये का दान, एवं रत्नावली २५६ अनेकान्त जयपताका के प्रस्तुत-साधन श्लोक । का दर्शन । २५८ स्तोत्र कैसे होने और किस रीति से पढने चाहिये ? २४० नमस्कार से अर्हत् को कुछ उपकार नहीं, चिन्तामणि २५९ ऐसे महास्तोत्रों को इस ढंग से पढ़ना कि..... । के दृष्टांत से नमस्कार के फल में भगवान कारण स्तोत्र पढ़ते समय कैसे रहना ? २४१ एक की पूजा से सबों की पूजा कैसे ? अनेक स्तोत्रों में अविरोध । ऐसा विधान करने में तीन कारण हैं २६० स्तोत्रश्रवण भी कार्य साधक है । २४२ संघपूजादि में आशय की व्यापकता किस प्रकार * चैत्यवंदन का उपहास अनुचित है । २४३ वी संपदा का उपसंहार । ____ अरिहंत चेइयाणं सूत्र ९ संपदा की जिज्ञासा के ९ हेतु, विचारकों की ९ २६१ वंदण वत्तियाए' आदि का अर्थ । विशेषता, ९ संपदाओं की युक्तियुक्तता और २६२ साधु को द्रव्यस्तव की अनुमति प्रभाव । २६४ साधु के द्वारा द्रव्यस्तव कराने की भी उपपत्ति २४५ अर्हत्-संपद् गुणों के अचिंत्य प्रभाव । संपदा-गुणों २६५ द्रव्यस्तव की निर्दोषता में 'सर्पमय-पुत्राकर्षण' दृष्टान्त के प्रणिधान से १. अशुभह्रास-शुभो पार्जन, २६६ श्रावक-कायोत्सर्ग में भावातिशय कारण । २. भावानुष्टान, ३. तद्गुणप्राप्ति । * देशविरतिभाव में जिनपूजा सत्कार की लालसा अनेकानेक स्वभाव से वस्तु की सिद्धि । २६७ द्रव्यरतवहिंसा सद् आरंभ, चूंकि आज्ञामृत योग* विविध संपदाओं से अनेकान्तसिद्धि असद् आरम्भनिवृत्ति * वस्तु एकानेक स्वभाव २६८ द्रव्यस्तव में औचित्य क्यों ? २४८, एकानेकस्वभाव के बिना विचित्रधर्म नहीं २६९ द्रव्यस्तव में शुभभाव अल्प होने से भावस्तव नहीं अनेक सापेक्षता से अनेकस्वभावता की सिद्धि द्रव्यस्तव निर्दोष `कूपरखनन' का दृष्टान्त । २६९ आज्ञायुक्त प्रवृत्ति ही सफल । २१ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001721
Book TitleLalit Vistara
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size11 MB
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