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२२. धम्मनायगाणं (धर्मनायकेभ्यः) (ल०-) तथा 'धम्मनायगाणं' । इह धर्मः अधिकृत एव, तस्य स्वामिनः, तल्लक्षणयोगेन । तद्यथा, (१) तद्वशीकरणभावात् (२) तदुत्तमावाप्तेः, (३) तत्फलपरिभोगात् (४) तद्विघातानुपपत्तेः । तथाहि, -
(पं.-) धर्मस्य नायकत्वे भगवतां साध्ये तद्वशीकरणादयश्चत्वारो मूलहेतवः प्रत्येकस्वप्रतिष्ठापकैः सभावनिकैश्चान्यैश्चतुभिरेव हेतुभिरनुगता व्याख्येयाः । तत्र तद्वशीरकणभावस्य मूलहेतोः (१) विधिसमासादनं, (२) निरतिचारपालनं, (३) यथोचितदानं, (४) तत्रापेक्षाभावश्च, एते सभावनिकाश्चत्वारः प्रतिहेतवः । द्वितीयस्य च तदुत्तमावाप्तिरूपस्य (१) प्रधानक्षायिकधर्मावाप्तिः, (२) परार्थसम्पादनं, (३) हीनेऽपि प्रवृत्तिः, (४) तथाभव्यत्वयोगश्चेत्येवंलक्षणाः । तृतीयस्य । पुनस्तत्फलपरिभोगलक्षणस्य (१) सकल (प्र०...सफल) सौन्दर्य (२) प्रातिहार्ययोग, (३) उदारीनुभूतिः, (४) तदाधिपत्यभावश्चेत्येवंरूपाः । चतुर्थस्य तु तद्विघातानुपपत्तिरूपस्य (१) अवन्ध्यपुण्यबीजत्वं, (२) अधिकानुपपत्तिः, (३) पापक्षयभावो, (४) अहेतुकविघातासिद्धिश्चेत्येवंस्वभावाः सभावनिकाश्चत्वार एव प्रतिहेतवः । एते भावनाग्रन्थेनैव व्याख्याता इति न पुनः प्रयासः । परं,
२२. धम्मनायगाणं (धर्म के नायक को) अब 'धम्मनायगाणं' पद की व्याख्या करते हैं। यहां धर्म कर के प्रस्तुत चारित्रधर्म ही समझना है। उसके स्वामी अर्हत्परमात्मा के प्रति मेरा नमस्कार हो, - ऐसा स्तुतिकार कहते हैं।
नायक यानी स्वामी के ४ लक्षण :
अर्हत्प्रभु धर्म के नायक यानी स्वामी इस कारण से है, कि उनमें नायक का स्वरूप प्राप्त है। यह इसलिए कि उन्होंने (१) धर्म का वशीकरण किया है, (२) धर्म की उत्तम प्राप्ति की है, (३) वे धर्म के फल के परिभोक्ता बने हैं, और (४)) उनमें धर्म का घात नहीं होता है। भगवान में धर्मनेतृत्व सिद्ध करने वाले ये धर्मवशीकरणादि चार तो मूल हेतु हैं; और इन में से प्रत्येक हेतु सिद्ध करने वाले भी और ४-४ हेतु हैं। ये इस प्रकार :
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मूलहेतु
प्रत्येक के ४-४ अवान्तर हेतु १. धर्मवशीकरण | विधिसमासादन - निरतिचारपालन - यथोचितदान - अपेक्षाऽभाव २. उत्तमधर्मप्राप्ति | क्षायिकधर्मप्राप्ति - परार्थसंपादन - हीनेऽपि प्रवृत्ति - तथाभव्यत्व ३. धर्मफलयोग | सकलसौन्दर्य - प्रातिहार्ययोग - उदारद्धयनुभव - तदाधिपत्य धर्मघाताभाव | अवन्ध्यपुण्यबीजत्व-अधिकानुपपति-पापक्षयभाव-अहेतुकविघातासिद्धि
इसमें एकेक मूल हेतु के ४-४ अवान्तर हेतु बतलाए। इन अवान्तर हेतुओं कि स्पष्ट विचारणा आगे के ग्रन्थ से की जायेगी। अतः यहां इसका प्रयत्न नहीं किया जाता। किन्तु इस स्पष्टता के साथ उन हेतुओं को लेकर मूल हेतुओं का निरुपण करना जरुरी है। यह इस प्रकार :अर्हद् भगवान द्वारा धर्म का वसीकरण कैसे ? :
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