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________________ :: ललितविस्तरा - विषयसूचि : पृष्ठ विषय जैनदर्शन की विशेषताएँ. * गांभीर्य, मंगलाचरण * ग्रन्थ का मोक्षमार्ग से संबंध * त्रिविधपरीक्षोत्तीर्णता ललित विस्तरा, पंजिका, अनुयोग के प्रकार २२ नित्य ही परिवर्तनसहिष्णु, विलक्षण नित्यानित्यत्व द्रव्यानुयोग आदि २३ इतर में कृतनाशादि दोष, * जैनदर्शन में इतरललितविस्तरा से प्रतिबुद्ध रिद्धर्षि गणि का दृष्टांत समावेश होते हुए भी दोष क्यों नहीं ? ग्रन्थविवरण के ३ साधन - मड्गलादि अनुबन्ध २३ जैनदर्शन का इतर दर्शन में असमावेश चतुष्टय, वस्तु के दो स्वरूप :१) सामान्य (२) विशेष २४ अपुनबंधक जीव के ३ लक्षण . जिनोत्तम * संम्पूर्ण-आंशिक व्याख्या * गम और २१ जिनप्रवचनमूल्यांकन हेतु ३ सिंहनाद सी शुद्ध देशना पर्याय * अनुवृत्तिपर्याय और व्यावृत्तिपर्याय बुद्धिभेद, सत्त्वनाश, दीनता, महामोहवृद्धि, क्रियात्याग 'कौन' शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ संसाररसिकों की श्रवण-अयोग्यता चैत्यवंदन की निष्फलता-सफलता की चर्चा २७ चैत्यवंदन-पूर्वविधि चैत्यवंदन-सम्यक्करण के चार हेतु अर्हवंदन पर भावना * नमोत्थुणं सूत्र का पाट धर्माधिकारी के ३ लक्षण (१) अर्थी, (२) समर्थ, प्रणिपातदंडक सूत्र का अर्थ और (३) शास्त्र से अनिषिद्ध नौ सम्पदाएं धर्माधिकारी कौन हो सकता है ? (१) धर्म का वस्तु वस्तुत: अनंत धर्मात्मक है, यह संपदा से सिद्ध बहुमान (२) विधि-तत्परता (३) उचितवत्ति-तीन ३१ व्याख्या के ६ लक्षण - (१) संहिता, (२) पद. (३) पदार्थ, (४) पदविग्रह, (५) चालना, लक्षणों का उपन्यास क्रम औचित्य, ऐहिक, पारलौकिक (६) प्रत्यवस्थान अधिकारी के तीन लक्षणों के बाझ १५ चिन . ३२ पुजा कया है ? अरहंतका अर्थ १६ धर्मबहुमान के ५ लिंग *धर्मकथाप्रीति ३३ व्याख्या के सात अंग (१) जिज्ञासा * धर्म-निन्दा-अश्रवण, धर्मनिन्दकअनकंपा. धर्म ३४ (२) गुरुयोग, गुरुकी ४ विशेषता, अन्वर्थ, . स्वपरशास्त्रबोध, परहितरक्तता, पराशयवेदिता में चित्तस्थापन, उच्च धर्मजिज्ञासा १६. विधिपरता के ५ लिंग * गुरु विनय, उचित (३) विधिपरता, निषद्या-अक्षस्थापना-मंदलीकालापेक्षा, उचितमुद्रा, युक्त-स्वरता, उपयोग . क्रमपालन, मुद्रा-विक्षेपत्याग-उपयोगप्रधानता १६ उचित वृत्ति के ५ लिंग - लोकप्रियता. अनिन्य ३५ (४) बोधपरिणति, - जानस्थिरता. कतर्कत्याग क्रिया, संकट में धैर्य, यथाशक्ति दान, लक्ष्य का मार्गानुसारिता, ढका हुआ रत्नभाजन ३६ (५) स्थैर्य,-अगर्व, अजोपहासत्याग, विवादत्याग, ध्यान अनधिकारी को देने में हानि अज्ञबुद्धिभेदाकरण, प्रज्ञापनीय में विनियोग ३७ (६) उक्तक्रिया - यथाशक्ति ज्ञातपालन जिज्ञासा का महत्त्व अपवाद सच्चा कौन ? ३८ (७) अल्पभवता २० ६ कर्तव्य, * क्षुद्रों की प्रवृत्ति की उपेक्षा * प्रवचन- ३९ ___ नमोत्थु' से नमस्कार के लिए प्रार्थना क्यों ? ४० धर्मबीजवपन: * श्रतधर्म और चारित्रधर्म साधना गांभीर्यगवेषण, * इतरदर्शन स्थिति की जांच, की विशद्धि के तीन अंग * अत्यन्तोपादेयबद्धि * जैन दर्शन वैशिष्टय निरीक्षण, * जैन दर्शन में * संज्ञाविष्कभण, * पौदगलिकआशंसात्याग इतरसमावेश, * महापुरुषचरित्रालम्बन १५ कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001721
Book TitleLalit Vistara
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size11 MB
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