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आचारदिनकर (खण्ड-३) 39 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
“उद्वृत्तासुरकोटिकूटघटनासंघट्टसंहारणः स्फारः स्फूर्जितवज्रसज्जिकरः शच्यंगसंगातिमुत्।।
__ क्लृप्तानेकवितानसंततिपराभूताघविस्फूर्जित श्रीतीर्थंकरपूजनेत्र भवतु श्रीमान् हरिः सिद्धये।।"
तथा निम्न मंत्रपूर्वक सौधर्मेन्द्रदेव का आह्वान करें, उनकी स्थापना करें एवं उन्हें जल, गन्ध, पुष्प, अक्षत, फल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करें और अर्घ दें -
___“ॐ नमः सौधर्मेन्द्राय तप्तकांचनवर्णाय सहस्राक्षाय पाकपुलोमजम्भविध्वंसनाय शचीकान्ताय वज्रहस्ताय द्वात्रिंशल्लक्षविमानाधिपतये पूर्वदिगधीशाय सामानिकपार्षद्यत्रयस्त्रिंशल्लोकपालानीकप्रकीर्णकलौकान्तिकाभियोगिककैल्बिषिकयुतः स्वदेवीतद्देवीयुतः इह प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ इदमयं पाद्यं बलिं चरूं गृहाण-गृहाण संनिहितो भव-भव स्वाहा। तत्पश्चात् बोलें “जल गृहाण-गृहाण स्वाहा, गन्धं गृहाण-गृहाण स्वाहा, पुष्पं गृहाण-गृहाण स्वाहा, अक्षतान् गृहाण-गृहाण स्वाहा, फलानि गृहाण-गृहाण स्वाहा, धूपं गृहाण-गृहाण स्वाहा, दीपं गृहाण-गृहाण स्वाहा, नैवेद्यं गृहाण-गृहाण स्वाहा, सर्वोपचारान् गृहाण-गृहाण स्वाहा ।
तत्पश्चात् इसी प्रकार क्रमशः निम्न छंद एवं मंत्रपूर्वक ईशानेन्द्रदेव एवं सरस्वती देवी का आह्वान करें, उनकी स्थापना करें एवं जल, गन्ध, पुष्प, अक्षत, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पण करें और अर्घ दें -
ईशानेन्द्र की पूजा के लिए -
छंद - "शूलालकृतहस्तशस्तकरणश्रीभूषितप्रोल्लसदेवरातिसमूहसंहृतिपरः त्विनिर्जितागेश्वरः ।।
ईशानेन्द्रजिनाभिषेकसमये धर्मार्थसंपूजितः प्रीतिं यच्छ समस्तपातकहरां विध्नौघविच्छेदनात्।।"
___ मंत्र - “ॐ नमः ईशानेन्द्राय स्फटिकोज्वलाय शूलहस्ताय यज्ञविध्वंसनाय अष्टाविंशतिलक्षविमानाधिनाथाय सामानिकपार्षद्यत्रयस्त्रिंशल्लोकपालानीकप्रकीर्णकलौकान्तिकाभियोगिककैल्बिषिकयुतः स्वदेवीतद्देवीयुतः ...... शेष पूर्ववत् बोलें।"
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