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आचारदिनकर (खण्ड-३)
38 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
८. ॐ नमो राहवे स्वाहा ६. ॐ नमः केतवे स्वाहा १०. ऊँ नमः
क्षेत्रपालाय स्वाहा ।
उसके बाद एक परिधि बनाएं, फिर बाहर की तरफ चतुः कोण से युक्त भूमिपुर बनाएं और उसके चारों कोणों पर लाल रंग के चार-चार वज्र के आकार बनाएं और उनके मध्य में निम्न मंत्रपूर्वक चार विदिशाओं में चार प्रकार के देवों की स्थापना करें
ॐ नमो वैमानिकेभ्यः स्वाहा
ईशानकोण में आग्नेयकोण में नैर्ऋत्यकोण में
ऊँ नमो भुवनपतिभ्यः स्वाहा
ॐ नमो व्यन्तरेभ्यः स्वाहा ॐ नमो ज्योतिष्केभ्यः स्वाहा
वायव्यकोण में
इस प्रकार नंद्यावर्त्तमण्डल की स्थापना की जाती है। अब इसकी पूजा-विधि बताते हैं -
सर्वप्रथम निम्न छंदपूर्वक नंद्यावर्त्त के ऊपर कुसुमांजलि अर्पण
करें
“कल्याणवल्लीकन्दाय कृतानन्दाय साधुषु ।
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निम्न छंद बोलें
इसी प्रकार निम्न मंत्रपूर्वक क्रमशः अर्घ देकर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत एवं नैवेद्य अर्पित करें -
"ॐ नमः सर्वतीर्थकरेभ्यः सर्वगतेभ्यः सर्वविद्भ्यः सर्वदर्शिभ्यः सर्वहितेभ्यः सर्वदेभ्यः इह नंद्यावर्त स्थापनायां स्थिताः सातिशयाः साप्रतिहार्याः सवचनगुणाः सज्ञानाः ससंघाः सदेवासुरनराः प्रसीदन्तु इदमर्घ्य गृहूणन्तु - गृहूणन्तु गन्धं गृहूणन्तु-गृहूणन्तु, पुष्पं गृहूणन्तु-गृहूणन्तु, धूपं गृह्णन्तु - गृहूणन्तु, दीपं गृहूणन्तु - गृहूणन्तु, अक्षतान् गृहूणन्तु-गृहूणन्तु, नैवेद्यं गृहूणन्तु - गृहूणन्तु स्वाहा । "
निम्न छंद से सौधर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र एवं वाग्देवता ( श्रुतदेवता ) पर पुष्पांजलि चढ़ाएं
"सौधर्माधिप शक्र प्रधान चेशाननाथ जनवरद ।
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सदाशुभविवर्त्ताय नंद्यावर्ताय ते नमः ।। "
भगवति वाग्देवि शिवं यूयं रचयध्वमासन्नम्।।“ तत्पश्चात् नंद्यावर्त्त के दाईं ओर स्थित सौधर्मेन्द्र की स्तुति हेतु
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