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आचारदिनकर (खण्ड-३) 19 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक पौष्टिककर्म विधान ..
१. सहदेवी २. बला ३. कुष्ट ४. प्रियंगु ५. स्त्वक् ६. गालव ७. दर्भमूलं ८. दूर्वा - इस प्रकार द्वितीय सर्वौषधिवर्ग की यह सामग्री लाएं।
१. विष्णुकान्ता २. शंखपुष्पी ३. वचा ४. चव्यं ५. यवासकम् ६. भर्भरी ७. शृंगराज ८. वासा ६. दुरालभा १०. भाही ११. प्रियंग १२. रास्ना १३. राठा १४. पाठा १५. महौषध १६. वत्सक १७. सहदेवी १८. स्थिरा १६. नागबला २०. वरी २१. दूर्वा २२. वीरण २३. मुंजौ २४. लामज्जक २५. जलम् २६. जीवन्ती २७ रूदती २८ ब्राह्मी २६. चतुःपत्री ३०. तथांबुज ३१. जीवक ३२. र्षभको ३३. मेद ३४. महापर ३५. वासन्ती ३६. मागधी ३७. मूलं ३८. जपा ३६. भुंगी ४०. सल्लकी ४१. नकुली ४२. मद्गपर्णी ४३. माषपर्णी ४४. तिंतिडी ४५. श्रीपर्णी ४६. कृष्णपर्णी ४७. मंडूकपर्णिका ४८. राजहंस ४६. महाहंस ५०. मुस्ता ५१. श्रीफल ५२. मकरंदक ५३. शोभांजन ५४. जुन ५५. कर्पास ५६. वट ५७. फल्गु ५८. प्लक्ष ५६. सिंदुबार ६०. करवीर ६१. वेतस ६२. कदंब ६३. कंटशैल ६४. कल्हार ६५. पिप्पल ६६. वरूण ६७. बीजपूर ६८. मेषशृंगी ६६. पुनर्नवा ७०. वज्रकंदो ७१. विदारी ७२. शृगाली ७३. रजनीद्वय ७४. चित्रक ७५. राट ७६. नलमूल ७७. कोरण्ट ७८. शतपत्रिका ७६. कुमारी ८०. नागदमनी ८१. गौरी ८२. निंब ८३. शाल्मलि ८४. कृतमाल ८५. मदार ८६. इंगुदी ८७. शाल ८८. शरपुंखा . ८६. अश्वगन्धा ६०. मयूरक ६१. वज्रशूल ६२. भूतकेशी ६३. रूद्रजटा ६४. रक्ता ६५. गिरिकर्णिका ६६. पातालतुंव्य ६७. तिविषा ६८. वज्रवृक्ष ६६. शाबर १००. चुक्षुष्या १०१. लज्जिरिका १०२. लक्ष्मणा १०३. लिंगलांछना १०४. काकजंघा १०५. पटोल १०६. मुरा १०७. तेजोवती १०८. कनकदु १०६. भूनिंब - ये सब उत्तम मूलिकाएँ हैं। शास्त्रज्ञों द्वारा इन सब मूलिकाओं के मिश्रण को शतमूल की संज्ञा दी गई है। - यह शतमूल वर्ग बताया गया है।
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