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आचारदिनकर (खण्ड-३) । प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान . करें और उस पर श्वेत सुगंधित मिट्टी डालें। फिर उसके ऊपर गौमूत्र एवं गोबर स्थापित करें, अर्थात् उनसे लीपकर उसे शुद्ध करें। फिर उस देश, नगर या ग्राम में सात दिन तक अमारि, अर्थात् किसी प्राणी की कोई हिंसा न करें - ऐसी राजाज्ञा की घोषणा करवाएं। राजा, अर्थात् देश या नगर के अधिपति को बहुत भेंट देकर प्रतिष्ठा-कार्य की अनुज्ञा प्राप्त करें। सोमपुरा, अर्थात् मन्दिर या मूर्ति के निर्माता को वस्त्र, मुद्रिका आदि स्वर्णाभूषण का दान करें।
अब अर्हत्-प्रतिमा की प्रतिष्ठा की विधि बताते हैं -
अपने स्थान से पचास योजन की परिधि में रहे हुए आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविकाओं को आमन्त्रित करें। केसरी सूत्र (डोरा), केसरी रंग से रंगे हुए वस्त्र संगृहीत करें एवं कुँवारी कन्याओं द्वारा काते गए सूत्र को बटकर डोरा बनाएँ। पवित्र स्थानों से, अर्थात् समस्त कुएँ, बावड़ी, तालाब, झरनों, नदियों, वृक्षों को पानी देने के लिए बनाई गई छोटी-छोटी नहरों का पानी एवं गंगाजल लाएं। उन जल के कलशों से वेदिका की रचना करें। दिक्पालों की पूजा के उपकरण स्थापित करें। स्नान कराने के लिए चार पुरुष जिनके दोनों कुल विशुद्ध हों, जो अखण्डित अंगवाले हों, निरोगी हों, शान्त प्रकृति वाले प्रवीण हों, स्नात्रविधि के ज्ञाता हों तथा उपवास किए हुए हों, उन्हें आमंत्रित करें। इसी प्रकार औषध का . .. प्रेषण करने, अर्थात् पीसने के लिए चार स्त्रियाँ, जिनके दोनों कुल . विशुद्ध हों, जिनके पुत्र और पति हों, जो सती, अर्थात् शीलवती हों, अखण्डित अंगों वाली हों, कार्य में निपुण हों, पवित्र हों एवं जिनकी मानसिक स्थिति सम्यक् हो, उन्हें भी आमंत्रित करें। दिशाओं में बलि देने के लिए नाना प्रकार के अन्नों के पकवान बनाकर अखण्डित पात्र में रखें। सूप से भग्न तंदुलों को झटककर निकाल दें। चारों दिशाओं में बलि दिए जाने हेतु निम्न सप्त धान्य एकत्रित करे -
१. सणबीज २. लाज ३. कुलत्थ (एक प्रकार की दाल) ४. यव (जौ) ५. कंगु ६. माष (उड़द) ७. सर्षप (सरसों) - इन सात धानों को मिलाएं। अन्य कुछ आचार्य निम्न सप्त धान्य मानते हैं - १. धान्य (शाली या धान की खील) २. मुद्ग (मूंग) ३. माष
विशुद्ध हों, जिनके पुत्र हाँ, कार्य में निपुण न करें। दिशाओं में
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