SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 10 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान शुभयोग की युति इस प्रकार है - शनि बलवान् हो, मंगल और बुध बलहीन हो तथा मेष और वृषभ राशि में सूर्य और चन्द्र हो, तो उस समय अरिहंत-प्रतिमा की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। शुभ तिथि, नक्षत्र, वार और चन्द्रबल की अपेक्षा भी यदि तीसरे, छटवें एवं ग्यारहवें स्थान में सूर्य रहा हुआ हो, तो वह लग्न प्रशंसनीय है। प्रतिष्ठा-लग्न में पहले, चौथे, पाँचवें, नवें, दसवें स्थान में चन्द्र या गुरु हो, तो वह प्रतिष्ठा-लग्न के लघु दोषों को उसी प्रकार से नष्ट कर देते हैं, जैसे छोटे-छोटे पौधे निम्न आवेगों से तट की रक्षा करते सूर्य के साथ नहीं रहा हुआ बुध केन्द्रस्थान में हो, अर्थात् पहले, चौथे, सातवें या दसवें स्थान में हो, तो वह लग्न के एक सौ दोषों का नाश करता है। सूर्य के साथ नहीं रहा हुआ शुक्र वपुलग्न, अर्थात् प्रथम लग्न में स्थित हो, तो वह हजार दोषों का नाश करता है और सूर्य के साथ नहीं रहा हुआ गुरु लग्न में स्थित हो, तो लाख दोषों का नाश करता है। लग्न, नवमांश और क्रूर दृष्टि से उत्पन्न होने वाले दोषों को लग्न में रहा हुआ गुरु नाश करता है, जैसे अरीठा जल को निर्मल (स्वच्छ) कर देता है। पंचम, चतुर्थ, दशम, प्रथम एवं नवम स्थान में गुरु अथवा शुक्र हो, तो लग्न में यदि कोई दोष हो, तो भी वह शुभत्व की प्राप्ति कराता हैं और यदि लग्न शुभ हो, तो उसके प्रभाव से शुभत्व में वृद्धि होती हैं। इस प्रकार उक्त निर्देश एवं नवांश के अनुसार की गई षड्वर्ग की शुद्धि स्थापना एवं दीक्षा हेतु शुभ होती है। यदि कार्य बहुत ही जरूरी हो, तो बहुगुणों से अन्वित अल्पदोष वाले लग्न में भी कर लेना चाहिए, अर्थात् उस लग्न को भी स्वीकार किया जा सकता है। इस प्रकार के शुभलग्न में ही प्रतिष्ठा-विधि करें। प्रतिष्ठा के समय उत्कृष्ट रूप से सौ धनुष प्रमाण क्षेत्र की शुद्धि करें, मध्यम रूप से पचास धनुष एवं जघन्यतः पच्चीस धनुष प्रमाण क्षेत्र की शुद्धि करें। क्षेत्र-शुद्धि की विधि इस प्रकार है - शुद्ध मिट्टी निकलने तक भूमि खोदें। तत्पश्चात् उसमें निकले हुए काष्ठ, अस्थि, चर्म, केश, नख, दन्त और तृण को जलाकर उनकी राख को वहाँ से हटाकर दूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy