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9 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
आचारदिनकर (खण्ड- 3)
एवं छठवें स्थान में केतु हो, तो वह शुभ माना जाता है, अन्य स्थान में हो, तो मध्यम माना जाता है । यही स्थिति राहू के सम्बन्ध में भी
है ।
प्रतिष्ठा - लग्न में यदि चन्द्र मंगल एवं सूर्य से युक्त हो, अथवा चन्द्र पर उक्त ग्रहों की दृष्टि हो, तो अग्नि का भय रहता है, शनि से युक्त या दृष्ट हो, तो मरण-भय कारक होता है, बुध से युक्त या दृष्ट हो, तो समृद्धि को प्रदान करता है । चन्द्रमा की उत्तम युति इस प्रकार है -
प्रतिष्ठा-लग्न में यदि चन्द्र गुरु से युक्त या दृष्ट हो, तो अधिष्ठायक देव सहित प्रतिमा की पूजा का फल अवश्य मिलता है । शुक्र से युक्त या दृष्ट हो, तो लक्ष्मी, अर्थात् समृद्धि की प्राप्ति होती है । प्रतिष्ठा - लग्न में विनाश - युति इस प्रकार है प्रतिष्ठा - लग्न में सूर्य बलहीन हो, तो प्रतिष्ठा करने वाले का, चन्द्र बलहीन हो, तो उसकी पत्नी का, शुक्र बलहीन हो, तो धन का एवं गुरु बलहीन हो, तो निश्चित रूप से सुख का नाश करते हैं । प्रतिष्ठा लग्न के पहले, दसवें, चौथे, सातवें एवं त्रिकोण (पाँचवें और नवें) स्थान में सूर्य और वक्री शनि हो, तो प्रासाद का विनाश करते हैं । मंगल, शनि, राहू, रवि, केतु, शुक्र- यें कुंडली के सातवें स्थान में हों, तो प्रतिष्ठा करने वाले का, प्रतिष्ठा करवाने वाले का तथा प्रतिमा का शीघ्र विनाश होता
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है । प्रतिष्ठा के समय में ग्रह सप्तम स्थान में हों, तो प्रयत्नपूर्वक उस प्रतिष्ठा - लग्न का त्याग करें। शनि निर्बल होकर केन्द्र में हो एवं त्रिकोण में स्थित हो, अर्थात् पाँचवें या नवें स्थान पर हो, अथवा उस पर दृष्टि पड़ती हो, तो बुद्धिमानों को उस मुहूर्त में प्रतिष्ठा का शुभारम्भ नहीं करना चाहिए । इसी प्रकार पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, नवें, दसवें या बारहवें स्थान में मंगल हो या इन स्थानों पर मंगल की दृष्टि पड़ती हो, तो वह भी हजारों सुखों का नाश करता हैं । प्रतिष्ठा लग्न में चंद्र क्रूर ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य सातवें स्थान पर हो या शनिवार के दिन प्रतिष्ठा की गई हो, तो प्रतिष्ठा करने वाले की मृत्यु होती हैं ।
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