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आचारदिनकर (खण्ड-३) 186 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान इनका निर्माण करे तो वेध आदि का दोष नहीं होता - ऐसा विश्वकर्मा का मत हैं। वेध का लक्षण करते हुए आगे कहा गया हैं कि अत्यधिक ऊँचा, तिर्यक् (तिरछा) एवं लम्बा आंगन तथा अत्यधिक ऊँचा राजसिंहासन राज भवन में वेध रूप माना गया है।
इस प्रकार वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में उभयधर्म अर्थात् गृहस्थधर्म और मुनिधर्म के स्तम्भ रूप प्रतिष्ठा-विधि नामक यह तेंतीसवाँ उदय समाप्त होता हैं।
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