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आचारदिनकर (खण्ड-३) 163 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान में महाभैरव, वायव्यकोण में गुरु एवं उत्तरदिशा में गंगा को स्थापित करें।
इस प्रकार स्थापित भगवती-मण्डल की पूजा करें -
“ऊँ ह्रीं नमः अमुकदेव्यै अमुकभैरवाय अमुकवीराय अमुकयोगिन्यै अमुकदिक्पालाय अमुकग्रहाय अमुक भगवन् अमुक अमुके आगच्छ-आगच्छ इदमयं पाद्यं बलिं चरुं आचमनीयं गृहाण-गृहाण संनिहितो भव-भव स्वाहा जलं गृहाण-गृहाण गन्धं पुष्पं अक्षतान् फलं मुद्रां धूपं दीपं नैवेद्यं गृहाण-गृहाण सर्वोपचारान् गृहाण-गृहाण शान्तिं कुरू कुरू तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं सर्वसमीहितं कुरु-कुरू स्वाहा।
इस मंत्र द्वारा यथाक्रम सभी देवी-देवताओं की सर्व वस्तुओं से एवं सर्व प्रकार की पूजा-सामग्रियों से पूजा करें तथा त्रिकोण कुण्ड में घी, मधु, गुग्गुल द्वारा उन देव-देवियों की संख्या के अनुसार, नंद्यावर्त्त-पूजा-विधि के सदृश निम्न हवन-मंत्र-पूर्वक आहुतियाँ दें -
हवन का मंत्र यह है - “ॐ रां अमुको देवः अमुका देवी वा संतर्पितास्तु स्वाहा।" - - यह विधि करके देवी की प्रतिमा को सदशवस्त्र से ढंक दें। उसके ऊपर चन्दन, अक्षत एवं फल-पूजा करें। निज मतानुसार देवी की प्रतिष्ठा में वेदिका नहीं होती हैं। तत्पश्चात् लग्नवेला के आने पर गुरु एकान्त में देवी की प्रतिष्ठा करें। वहाँ निम्न पच्चीस द्रव्यों से निर्मित वासक्षेप का संग्रह करें। वे पच्चीस द्रव्य इस प्रकार हैं - चन्दन, कुंकुम, कक्कोल, कपूर, विष्णुक्रान्ता, शतावरी, वालक, दूर्वा, प्रियंगु, उशीर, तगर, सहदेवी, कुष्ठ, कर्नूर, मांसी, शैलेय, कुसुम्भ, करोध्र, बलात्वक, कदम्ब । वासक्षेप डालने से पूर्व देवी-प्रतिमा के सर्व अंगों पर देवी के मंत्रपूर्वक मायाबीज का न्यास करें। फिर सभी लोगों के समक्ष देवी पर आच्छादित वस्त्र उतारकर गन्ध, अक्षत आदि से पूजा करें। उसके बाद भगवती को स्नान कराएं। सर्वप्रथम क्षीर-कलश लेकर निम्न छंदपूर्वक स्नान कराएं - _ "क्षीराम्बुधेः सुराधीशैरानीतं क्षीरमुत्तमम् ।
अस्मिन्भगवतीस्नात्रे दुरितानि निकृन्ततु ।।१।।"
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