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आचारदिनकर (खण्ड-३) 162 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान
पुनः वलय बनाकर आठ पंखुड़ियाँ बनाएं। वहाँ निम्न मंत्रपूर्वक आठ देव (अष्ट भैरव) की स्थापना करें -
१. ह्रीं श्रीं भैरवाय नमः २. ह्रीं श्रीं महाभैरवाय नमः ३. ह्रीं श्रीं चण्डभैरवाय नमः ४. ह्रीं श्रीं रुद्रभैरवाय नमः ५. ह्रीं श्रीं कपालभैरवाय नमः ६. ह्रीं श्रीं आनन्दभैरवाय नमः ७. ह्रीं श्रीं कंकालभैरवाय नमः ८. ह्रीं श्रीं भैरव भैरवाय नमः।
पुनः उसके ऊपर वलय बनाकर निम्न मंत्रपूर्वक सर्वदेवियों को वलयरूप में स्थापित करें -
ॐ ह्रीं श्रीं सर्वाभ्यो देवीभ्यः सर्वस्थाननिवासिनीभ्यः सर्वविघ्नावनाशिनीभ्यः सर्वदिव्यधारिणीभ्यः सर्वशास्त्रकरीभ्यः सर्ववर्णाभ्यः सर्वमन्त्रमयीभ्यः सर्वतेजोमयीभ्यः सर्वविद्यामयीभ्यः सर्वमन्त्राक्षरमयीभ्यः सर्वर्द्धिदाभ्यः सर्वसिद्धिदाभ्यो भगवत्यः पूजां प्रयच्छन्तु स्वाहा।।
तत्पश्चात् उसके ऊपर वलय बनाकर दस पंखुडियाँ बनाएं तथा निम्न मंत्रपूर्वक उसमें प्रदक्षिणा-क्रम से दस दिक्पालों की स्थापना करें -
१. ॐ इन्द्राय नमः २. ॐ अग्नये नमः ३. ऊँ यमाय नमः ४. ॐ निर्ऋतये नमः ५. ॐ वरुणाय नमः ६. ऊँ वायवे नमः ७. ऊँ कुबेराय नमः ८. ऊँ ईशानाय नमः ६. ऊँ नागेभ्यो नमः १०. ॐ ब्रह्मणे नमः।
पुनः वलय बनाकर उसमें दस पंखुडियाँ बनाएं तथा उनमें निम्न मंत्रपूर्वक प्रदक्षिणा-क्रम से क्षेत्रपाल सहित नवग्रहों की स्थापना
करें -
१. ॐ आदित्याय नमः २. ऊँ चन्द्राय नमः ३. ऊँ मङ्गलाय नमः ४. ॐ बुधाय नमः ५. ऊँ गुरवे नमः ६. ऊँ शुक्राय नमः ७. ऊँ शनैश्चराय नमः ८. ॐ राहवे नमः ६. ॐ केतवे नमः १०. ऊँ क्षेत्रपालाय नमः।
तत्पश्चात् उसके बाहर चतुष्कोण भूमिपुर बनाएं। उसके मध्य में ईशानकोण में गणपति, पूर्वदिशा में अम्बा, आग्नेयकोण में कार्तिकेय, दक्षिणदिशा में यमुना, नैर्ऋत्य कोण में क्षेत्रपाल, पश्चिमदिशा
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