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आचारदिनकर (खण्ड-३) 152 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान की आरती उतारें, किन्तु कलश के स्थान पर ध्वज का नाम लें। पुनः जिनस्तुतियों से युक्त चैत्यवंदन करें। तत्पश्चात् “शान्तिनाथ भगवान् के आराधनार्थ मैं कायोत्सर्ग करता हूँ"- ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके शान्तिनाथ भगवान् की स्तुति बोलें -
“श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्ति विधायिने। त्रैलोक्यमराधीश मुकुटाभ्यः चितांघ्रये।।
तत्पश्चात् श्रुतदेवी, शान्तिदेवी, शासनदेवी, अम्बिकादेवी, क्षेत्रदेवी, प्रतिष्ठादेवी एवं समस्त वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए कायोत्सर्ग एवं स्तुति आदि की क्रिया पूर्ववत् करें।
फिर बैठकर शक्रस्तव का पाठ करें एवं बृहत्शान्तिस्तव बोलें। बलिप्रदान में सात प्रकार के धान्य एवं विभिन्न प्रकार के फलों का दान करें। उन्हें वासक्षेप, पुष्प एवं धूप से वासित करें। ध्वजदण्ड पर से वस्त्र को उतारें। फिर ध्वजदण्ड पर ध्वजपट्ट को आरोपित करें। जिस चैत्य पर ध्वज का आरोपण किया जाना है, उस चैत्य की पार्श्व से तीन प्रदक्षिणा दें। फिर प्रासाद के शिखर पर निम्न छंदपूर्वक पुष्पांजलि अर्पण करें -
"कुलधर्मजातिलक्ष्मीजिनगुरुभक्तिप्रमोदितोन्नमिदे। प्रासादे पुष्पांजलिरयमस्मत्कर कृतो भूयात् ।। निम्न छंदपूर्वक शिखर के कलश को स्नान कराएं - "चैत्याग्रतां प्रपन्नस्य कलशस्य विशेषतः।। ध्वजारोपविधौस्नानं भूयाद्भक्तजनैः कृतम् ।।"
ध्वज के गृह में, अर्थात् पीठ में पंचरत्न डालें। जब सर्वग्रहों की दृष्टि शुभ हो तथा लग्न भी शुभ हो, उस समय ध्वज आरोपित करें। आचार्य सूरिमंत्र से वासक्षेप करे। विभिन्न प्रकार के फल, सात प्रकार के धान्य, बलि, मोरिण्डक (?) मोदक आदि वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में डालें। प्रतिमा के दाएँ हाथ की तरफ महाध्वज को ऋजुगति से बांधे। प्रवचन मुद्रापूर्वक आचार्य धर्मदेशना दे। संघपूजा एवं अष्टाह्निका पूजा करें। तत्पश्चात् विषम दिन में, अर्थात् तीन, पाँच या सात की संख्या वाले दिन बृहत्स्नात्रविधि से परमात्मा की पूजा करके, भूतबलि
संख्या वा तत्पश्चात् विषाचार्य धर्मदेशना महाध्वज ।
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