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________________ 151 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान प्रतिष्ठा-विधि की भाँति दिक्पालों का आह्वान करें। तत्पश्चात् शान्ति हेतु बलि देकर बृहत्स्नात्रविधि से मूलबिम्ब की स्नात्रपूजा करें। फिर संघ के साथ गुरु चार स्तुतियों से चैत्यवंदन करें। शान्तिदेवता, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता एवं वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" - यह कहकर पूर्व की भाँति कायोत्सर्ग करें और स्तुति बोलें। तत्पश्चात् निम्न छंदपूर्वक ध्वजदण्ड पर कुसुमांजलि डालें “रत्नोत्पत्तिर्बहुसरलता सर्वपर्वप्रयोगः सृष्टोच्चत्वं गुणसमुदयो मध्यगम्भीरता च । आचारदिनकर (खण्ड-: ड-३) यस्मिन् सर्वा स्थितिरतितरां देवभक्तप्रकारा तस्मिन् वंशे कुसुमविततिर्भव्य हस्तोद्गतास्तु । ।" कलश-प्रतिष्ठा की भाँति ध्वजदण्ड पर चन्दन से लेप करें, पुष्प आदि से पूजा करें तथा चाँदी से निर्मित जल - कलशों से स्नान कराएं। तत्पश्चात् क्रमश - १. कर्पूर २. कस्तूरी ३. पंचरत्न का चूर्ण ४. गाय के सींगों से खोदकर निकाली गई मिट्टी, चौराहे की मिट्टी, राजद्वार की मिट्टी एवं वल्मीक की मिट्टी ५. मूली ६. अगरू ७. सहस्रमूली ८. गन्ध ६. वास ( वासक्षेप, अर्थात् चन्दन का चूर्णं) १०. चन्दन ११. कुंकुम १२. तीर्थोदक एवं १३. स्वर्णमिश्रित जल के कलशों से पूर्व कथित छंदों से जिनबिम्ब के स्थान पर ध्वज शब्द बोलकर ध्वजदण्ड की स्नात्रपूजा करें। फिर बृहत्स्ना विधि के काव्यों से ध्वजदण्ड को पंचामृत स्नान कराएं। तत्पश्चात् बृहत्स्नात्रविधि के काव्यों से ध्वजदण्ड पर चन्दन का लेप करें, पुष्प चढ़ाएं एवं धूप-उत्क्षेपण करें। ऋद्धि-वृद्धि, सफेद सरसों एवं मदनफल से युक्त कंकण का बंधन बिम्ब-प्रतिष्ठा की भाँति ही करें । नंद्यावर्त्त पूजा करें। प्रतिष्ठा की लग्नवेला आने पर ध्वजदण्ड को सदशवस्त्र से आच्छादित करें। कलश- प्रतिष्ठा की भाँति पंचमुद्राओं द्वारा न्यास करें। चार स्त्रियाँ ध्वजदण्ड को बधाएं । फिर ध्वजपट्ट की वासक्षेप द्वारा पूजा करें एवं धूप-उत्क्षेपण आदि क्रिया करें। "ॐ श्रीठः " इस मंत्र से ध्वजदण्ड को अभिमंत्रित करें। तत्पश्चात् जवारारोपण, अनेक जातियों के फल, बलि, नैवेद्य आदि चढ़ाएं। कलश की आरती के छंद से ध्वज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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