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आचारदिनकर (खण्ड-३)
147 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
मण्डपिका की प्रतिष्ठा देवकुलिका - प्रतिष्ठा के समान ही करें। कोष्ठिका आदि की प्रतिष्ठा में सूत्र द्वारा रक्षा करें, दिक्पाल एवं ग्रहों की पूजा करें तथा पूर्वकथित वास्तुदेवता के मंत्र से वासक्षेप डालें । - प्रतिष्ठा अधिकार में यह चैत्य प्रतिष्ठा की विधि बताई गई
अब कलश-प्रतिष्ठा की विधि बताते हैं । वह इस प्रकार है पूर्व की भाँति ही भूमि की शुद्धि करें। लग्न की शुद्धि प्रतिष्ठा के समान करें तथा गन्धोदक एवं पुष्प द्वारा भूमि की प्राण-प्रतिष्ठा करें। पूर्व की भाँति ही सर्वप्रथम उस भूमि में कुम्भकार के चाक की मिट्टी सहित पंचरत्न डालकर उसके ऊपर कलश स्थापित करें। तत्पश्चात् सर्वजलाशयों से एवं पवित्र स्थानों से पूर्व की भाँति जल लाएं। उसके बाद बृहत्स्नात्रविधि से चैत्य के बिम्ब की स्नात्रपूजा करें। पंचवलय के नंद्यावर्त्त की स्थापना एवं पूजा पूर्व की भाँति करें तथा जिनबिम्ब, चैत्य, मण्डप, देवकुलिका, मण्डपिका, कलश, ध्वज एवं गृह बिम्ब की प्रतिष्ठा करवाने वाले के घर या राजा के घर या हवन करवाने वाले के घर में पूर्व की भाँति शान्तिक एवं पौष्टिक - कर्म करें। नंद्यावर्त्त पूजा के बाद सभी दिशाओं में दिक्पालों के नाम लेकर निम्न मंत्रपूर्वक शान्ति - बलि दें -
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“ॐ इन्द्राय नमः ॐ इन्द्र इह कलश प्रतिष्ठायां इमं बलिं गृहाण - गृहाण स्थापक-स्थापक कर्तृणां संघस्य जनपदस्य शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं कुरू कुरू स्वाहा । "
इसी प्रकार सभी दिशाओं की तरफ मुँह करके सर्व दिक्पालों को बलि दें। बलिदान से पूर्व चुल्लूभर जल डालें। फिर सुगन्धित द्रव्य के छींटे तथा पुष्प डालें एवं सात प्रकार के पक्व धान्य डालें । उपर्युक्त बलिमंत्रपूर्वक सभी दिक्पालों के नाम, यथा- "ॐ आग्नेय नमः" "ॐ अग्नये ." इत्यादि बोलकर बलि दें। पूर्व में बताए गए गुणों वाली स्त्रियों द्वारा पूर्वोक्त औषधियों को तैयार करवाएं और पूर्ववत् स्नात्रकारों को आमन्त्रित करें। पूर्व की भाँति ही सकलीकरण की क्रिया करे साथ ही पूर्व की भाँति स्नात्रकार शुचिविद्या का आरोपण करें । फिर परमात्मा की प्रतिमा के समक्ष चार स्तुतियों द्वारा चैत्यवंदन करें ।
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