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________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 145 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान तत्पश्चात् शान्ति का पाठ करें एवं साधर्मिकवात्सल्य करें । शक्ति के अनुसार बारह वर्ष तक नित्य स्नात्रपूजा करें एवं वार्षिकोत्सव करें। प्रतिष्ठा अधिकार में अन्य आचार्यों द्वारा कंकण - मोचन की यह विधि बताई गई है। चैत्य की स्थापना, नवग्रहों की स्थापना और धातु, काष्ठ, पाषाण एवं हाथीदाँत से निर्मित जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा विधि एक जैसी ही है, किन्तु लेप्यमय प्रतिमा की प्रतिष्ठा में इतना विशेष है कि लेप्यमय प्रतिमा पर स्नात्रविधि न करके उसके समक्ष स्थित दर्पण के प्रतिबिम्ब पर स्नात्र करें, शेष पूर्ववत् करें। गृहचैत्य में पूजनीय बिम्बों की जहाँ प्रतिष्ठा की गई हो, यदि उन्हें उसी गृह में प्रतिष्ठित करना हो, तो भी पूर्व प्रतिष्ठित बिम्बों की कंकण मोचन - विधि की जाती है। अन्य किसी गृह में, अन्य गाँव में या अन्य देश में स्थापित करना हो, तो वहाँ ले जाकर प्रवेश महोत्सवपूर्वक कंकण मोचन करें। कंकणमोचन की यह भी एक विधि है । इस प्रकार प्रतिष्ठा अधिकार में जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा सम्बन्धी क्रियाएँ सम्पूर्ण होती हैं । अब चैत्य-प्रतिष्ठा की विधि बताते हैं । वह इस प्रकार हैं बिम्ब-प्रतिष्ठा के शुभ लग्न में, अर्थात् उसी लग्न में जिसमें बिम्ब की प्रतिष्ठा हुई हो, यथाशीघ्र दिन, मास, पक्ष या एक वर्ष व्यतीत होने पर संघ को एकत्रित करें। चैत्य की चारों दिशाओं में वेदिका बनाएं। फिर चौबीस तन्तुसूत्रों से अन्दर की तरफ एवं बाहर की तरफ लपेटकर शान्ति- मंत्र द्वारा चैत्य की रक्षा करें। तत्पश्चात् पूर्व की भाँति ही गुणों से युक्त स्नान कराने वाले पाँच पुरुषों को और औषधि कूटने वाली पाँच स्त्रियों को आमंत्रित करें। इस विधि में सुरमा एवं शहद से रसांजन बनाने की क्रिया नहीं होती है। बृहत्स्ना विधि से परमात्मा की स्नात्रपूजा करें। बिम्ब-प्रतिष्ठा की भाँति ही सात प्रकार के धान्य चढ़ाएं तथा रक्षाबन्धन करें। फिर रौद्रदृष्टिपूर्वक दोनों मध्य अंगुलियों को खड़ी करके बाएँ हाथ में स्थित जल से चैत्य को अभिसिंचित करें। उसके बाद बिम्ब-प्रतिष्ठा की भाँति चैत्य के ऊपर वस्त्र ढक दें। नानाविध गन्ध, फल एवं पुष्पों से पूजा करें। फिर बिम्ब - प्रतिष्ठा की भाँति ही नंद्यावर्त्त - मण्डल की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International -
SR No.001720
Book TitlePratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Religion, & Vidhi
File Size16 MB
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