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आचारदिनकर (खण्ड-३) 144 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर प्रकट रूप से चतुर्विंशतिस्तव बोलें। फिर "श्रुतदेवता की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" - ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके "नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्य" पूर्वक “सुयदेवयाभग.“ स्तुति बोलें। इसी प्रकार वाग्देवता, शान्तिदेवता, क्षेत्रदेवता एवं समस्त वैयावृत्त्यकर देवताओं के आराधनार्थ एक-एक नवकार का कायोत्सर्ग करके क्रमशः निम्न स्तुति बोलें -
वाग्देवी की स्तुति - “वाग्देवी वरदीभूत पुस्तिका पद्मलक्षितौ। आपोद्या बिभ्रती हस्तौ पुस्तिकापद्मलक्षितौ ।।"
शान्तिदेवता की स्तुति - "उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगतिदुः स्वप्नदुनिमित्तादिः ।
संपादितहितसंपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ।।"
क्षेत्रदेवी की स्तुति - “यस्याः क्षेत्र समाश्रित्य साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्र देवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी।।"
समस्त वैयावृत्त्यकर देवता की स्तुति - “सम्मइंसणजुत्ता जिणमय भत्ताणहिययसमजुत्ता।
जिणवेयावच्चगरा सव्वे मे हुतु संतिकरा ।।
तत्पश्चात् शुभमुहूर्त में सौभाग्यमुद्रा द्वारा निम्न मंत्र से मंगलाचारपूर्वक कंकण-मोचन करें -
"ऊँ अवतर-अवतर सोमे-सोमे कुरू कुरू वग्गु-वग्गु निवग्गु-निवग्गु सोमेसोमणसे महुमहुरे कविल ऊँ कः क्षः स्वाहा।
तत्पश्चात् निम्न मंत्रपूर्वक अंजलिमुद्रा से प्रतिष्ठादेवता का विसर्जन करें -
"ॐ विसर-विसर प्रतिष्ठा देवता स्वाहा।'
इसी प्रकार निम्न श्लोक द्वारा सभी देवताओं का विसर्जन करें
"देवा देवार्चनार्थ ये पुरुहूताश्चतुर्विधाः। ते विधायार्हतः पूजां यान्तु सवै यथागतम् ।।
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